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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/230 इससे भी अधिक सामान्य रूप से जीवन की मात्रा को कार्यों और चरित्रों का मूल्यांकन करने वाला प्रेरक-साध्य माना है। दूसरे, इसने आनुभविक-उपयोगितावादी तर्क के स्थान पर नैतिक-नियमों को जैविक एवं सामाजिक-नियमों के द्वारा निगमित करने का प्रयास किया है, वह दूसरी प्रक्रिया कभी-कभी नैतिकता को वैज्ञानिक आधार पर स्थापित करने का प्रयास कहलाती है। इस निगमन की प्रक्रिया में जो साध्य नैतिकनियमों के लिए वैज्ञानिक-कसौटी प्रस्तुत करता है, उस साध्य को विकासवादीसम्प्रदाय के विभिन्न विचारकों ने अलग-अलग रूप से परिभाषित किया है। इस वस्तुनिष्ठ साध्य का सुख से क्या सम्बंध है, इस सम्बंध में उनमें अधिक मौलिक मतभेद हैं। कुछ विकासवादी-लेखकों ने जीवन के संरक्षण या विस्तार के वास्तविक परमसाध्य माना है और सुख या आनंद को मात्र उसका एक सहयोगी तत्त्व माना है, किंतु इसे वैज्ञानिक-रूप से महत्त्वपूर्ण नहीं माना गया है, यद्यपि हर्बर्ट स्पेंसर ने, जो कि विकासवादी-नीतिशास्त्र के एक प्रभावशाली विचारक हैं, इस दृष्टिकोण का विरोध किया है। वस्तुतः, उनका कथन है कि सार्वभौम-आचरण का सर्वेक्षण अर्थात् सभी प्रकार के जीवित प्राणियों के कार्य हमें यह बताते हैं कि जीवन की मात्रा को चौडाई60 के साथ-साथ लम्बाई में भी मापना चाहिए। उसे एक ऐसे साध्य के रूप में स्वीकार करना चाहिए कि जिससे जीवन का विकास होता जाए, वे कार्य उससे अधिकाधिक समायोजित होने की प्रवृत्ति रखने लगे हैं, किंतु वह यह मानता है कि जीवन के संरक्षण के लिए प्रवृत्त होने वाला आचरण ही केवल शुभ है और सामान्यतया ऐसा माना जाता है, इस आधार पर जीवन की सहवर्तिता सुखद-अनुभूतियों की अधिकता से है। वह स्पष्ट रूप से यह नहीं कहता है कि सदैव ही जीवन की सहवर्त्तिता सुख के साथ-साथ होती है, तथापि वह यह मानता हुआ प्रतीत होता है कि नैतिक-उद्देश्यों के लिए जीवन की अधिकतम मात्रा की उपलब्धि के सहायक कार्य और सुखदअनुभूतियों की अधिकतम मात्रा की उपलब्धि के सहायक कार्य सहगामी माने जा सकते हैं। इस सहगामिता (समकालीनता) को स्वीकार करने की उसकी तत्परता का कारण यह है कि वह नैतिक दर्शन को प्राथमिक रूप से एक यथार्थ मानव-प्राणी के आचरण से सम्बंधित नहीं मानता है। उसके अनुसार, नैतिक-दर्शन का प्राथमिककार्य एक आदर्श समाज में सामान्य आचरण का निर्माण करना है। वह समाज इतना आदर्श होगा कि उसमें सामान्य आचरण तब कहीं दुःखरहित सुख को उत्पन्न करेगा। स्पेंसर के दृष्टिकोण के अनुसार, वही आचरण निरपेक्ष रूप से उचित कहा जा सकता