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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/226 की सीमा यह है कि उसे निंदित व्यक्ति के सुख की अभिवृद्धि के लिए प्रयुक्त नहीं किया जाना चाहिए। मिल के दृष्टिकोण में जनमत का नैतिक-बल एक प्रकार का सामाजिक-हस्तक्षेप है। समाज के द्वारा केवल अपने संरक्षण के लिए ही इसका उपयोग करना उचित कहा जा सकता है। मिल मानता है कि किसी व्यक्ति के द्वारा अपने प्रति की गई गलती उन लोगों को भी बहुत अधिक प्रभावित कर सकती है, जो सहानुभूति या हितों की दृष्टि से उससे सम्बंधित हैं और कुछ अंश में सम्पूर्ण समाज को भी, किंतु मिल यह मानता है कि यह ऐसी असुविधा है, जिसे मानवीय-स्वतंत्रता के बड़े शुभ के लिए समाज उस सीमा तक सहन कर सकता है, जहां तक वह या तो व्यक्ति या जनता के लिए निश्चित रूप से हानिकर नहीं हो या हानिकर होने की सम्भावना निश्चित ही नहीं हो। उदाहरणार्थ - हम सामान्यतया एक साधारण नागरिक की आलोचना केवल उसके मद्यपान करने के लिए नहीं करते हैं, किंतु यदि उसकी यह नशाखोरी या मद्यपान उसे अपने कर्ज का भुगतान करने में या अपने परिवार का पालन-पोषण करने में अयोग्य बनाती है, तो वह निश्चित ही निंदा का पात्र है और इसी प्रकार एक पुलिस का सिपाही, यदि वह अपने कर्त्तव्य के समय मद्यपान करता है, तो निंदा के योग्य है। साहचर्यवाद यद्यपि मिल यह मानता है कि नैतिक स्थायी-भावों का नियमन सजगतापूर्वक और स्वैच्छिक रूप में अभी बताए गए अनुसार होना चाहिए, ताकि उनका क्रियान्वयन यथासम्भव सामान्य सुख के लिए सहायक हो सके। वह नैतिक-स्थायी भाव का सहानुभूति या बौद्धिक-परोपकार के साथ तादात्म्य नहीं करता है। इसके विपरीत, वह यह मानता है कि मन जब तक सद्गुण को स्वतः ही वांछित वस्तु के रूप में बिना उसकी उपयोगिता के चेतन संदर्भ के स्वीकार नहीं करता है, तब तक वह उपयोगिता सुसंगति की अवस्था में नहीं है। मिल मानता है कि सद्गुण के प्रति ऐसा प्रेम एक अर्थ में स्वाभाविक होगा, यद्यपि वह मानव-स्वभाव का चरम और अव्याख्येय तत्त्व नहीं होगा। वह इसकी व्याख्या प्रत्ययों और भावनाओं के साहचर्य के नियम के द्वारा करता है। जैसा कि हमने पूर्व में देखा था, सर्वप्रथम हार्टले ने मानसिक प्रपंच के मनोभौतिक सिद्धांत के लिए इसका व्यापक रूप से प्रयोग किया था"। मिल के दृष्टिकोण के अनुसार, यह नियम दो रूपों में कार्य करता है, जिन्हें अलग-अलग करना आवश्यक है। प्रथम तो, मौलिक रूप से सद्गुण का मूल्यांकन नैतिकता से रहित सुखों के सहायक
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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