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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/221 के रूप में यह मानता हो कि यह उसका कार्य नहीं है कि वह उन आकस्मिक और आंशिक-संघर्षों, जो कि विश्व की वर्तमान अपूर्ण अवस्था में व्यक्ति और सामान्य सुख के बीच होते हैं, पर निर्भर रहे, वरन् इसकी अपेक्षा वह बलपूर्वक मनुष्यों पर यह प्रभाव डालना चाहता है कि किस सीमा तक उनके सुख वस्तुतः उन तथ्यों से अभिवृद्धि पाते हैं, जो कि सामान्य सुख को उत्पन्न करते हैं। वह यह बताता है कि कैसे ईमानदारी सामान्यतया अच्छी नीति है। किस प्रकार दूसरों की ऐच्छिक-सेवा सामान्य शुभ संकल्परूपी बैंक (अधिकोष) में लाभपूर्ण विनियोजन है। उन सुखों और दुःखों का मूल्यांकन प्रत्येक स्थिति में कितना भ्रांत है, जिनके आधार पर व्यावहारिक-रूप में स्वार्थी और दुष्ट मनुष्यों के कार्य निर्धारित होते हैं। तो भी बेंथम की मृत्यु के पश्चात् उसकी पांडुलिपियों से बोरिंग के द्वारा प्रकाशित ग्रंथ में वह स्पष्ट रूप से यह स्वीकार करता है कि अनुभवात्मक-दृष्टि से ज्ञात वास्तविक मानव-जीवन में सामान्य सुख की सर्वाधिक वृद्धि करने वाला आचरण सदैव ही उसकी समाप्ति है, जो कि कर्ता के सुख की सर्वाधिक अभिवृद्धि करता है। यहां बुराई को एक विशुद्ध इहलौकिकदृष्टिकोण के आधार पर संयोगों की गलत गणना के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। यह संभव दिखाई देता है कि बेंथम ने अपने बाद के दिनों में इसे एक सच्चे सिद्धांत के रूप में स्वीकार कर लिया होगा, क्योंकि वह निश्चित रूप से यह मानता है कि सदैव ही प्रत्येक व्यक्ति के लिए किसी कार्य को करते समय कार्य का वास्तविक साध्य अपना सर्वाधिक वास्तविक सुख अर्थात् उस क्षण से जीवन के अंत तक का सुख है। बेंथम इसे अधिकतम संख्या के अधिकतम सुख की अपनी निरपेक्ष स्वीकृति से बिना पीछे हटे ही नैतिकता के क्षेत्र में क्या उचित या अनुचित है, इसके एक सरल किंतु वास्तविक प्रमापक के रूप में स्वीकार करता है। यदि जिस आनुभविक आधार पर उसके सारे तर्क आश्रित हैं, उसे मान्य रखा जाए, तो उसकी यह मान्यता दो धारणाओं के समन्वय के लिए अपेक्षित भी है, लेकिन मानव समाज की वास्तविक परिस्थितियों में हितों की इस सामान्य संगति का अनुभवात्मक सही प्रमाण दे पाना बहुत ही कठिन है। यह आश्चर्यजनक नहीं है कि बेंथम के बहुत-से अनुयायियों ने उसके दर्शन की इस रिक्तता से बचने का प्रयास किया है। बेंथम के सम्प्रदाय का एक वर्ग, जिसके प्रतिनिधि जान आस्टिन हैं, पुनः पेले की ओर लौटते हुए दिखाई देता है और उपयोगितावादी-नैतिकताको ईश्वरीय विधान के नियम के रूप में प्रस्तुत करते हैं। दूसरा वर्ग ग्रोटे के नेतृत्व में व्यक्ति पर सामान्य सुख के द्वारा प्रस्तुत दावों की
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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