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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/220 में प्राकृतिक (भौतिक) अंकुश, राजनीतिक-अंकुश और लोकप्रियता का अंकुश या नैतिक अंकुश कहा गया है। इनमें वह धार्मिक अंकुश को भी जोड़ देता है, अर्थात् वे दुःख और सुख, जिनकी प्राप्ति स्वयं सर्वोच्च अदृश्य सत्ता के द्वारा होती है। प्रथम दृष्टि में पारलौकिक परिणामों की यह स्वीकृति प्रथम के दर्शन को उस लौकिक अनुभव के सरल और इंद्रिय-गोचर आधार से ऊपर उठा देती है, जो कि विशेष रूप से हमारे ध्यान को आकर्षित करता है, किंतु सत्यता यह है कि वह धार्मिक-आशाओं और भयों को गम्भीरतापूर्वक स्वीकार नहीं करता है, सिवाय एक ऐसे प्रेरक के रूप में, जो कि वस्तुतः मानव मन को प्रभावित करता है और इसलिए यह धार्मिक-प्रेरक भी दूसरे प्रेरकों के साथ-साथ निरीक्षण और मापन के विषय हैं। बेंथम स्वयं सर्वशक्तिमान्
और परोपकारी सत्ता के संकल्प का व्यक्ति और सामान्य सुख के प्रत्ययों को तार्किकरूप से जोड़ने के साधन के रूप में उपयोग नहीं करता है। इस प्रकार, वह निश्चित ही अपने दर्शन को सरल बनाता है और पेले के दर्शन में उपस्थित प्रकृति और शास्त्र के विवादास्पद निष्कर्षों से स्वयं को बचा लेता है, किंतु यह उपलब्धि एक महंगा सौदा है, क्योंकि तत्काल ही यह प्रश्न उठता है कि जिनके पालन से मनुष्यों के सामान्य सुख की अभिवृद्धि होती है, ऐसे इन नैतिक-नियमों के अंकुशों को कैसे उन सभी व्यक्तियों के लिए उचित सिद्ध किया जावे, जिनसे इनका पालन अपेक्षित है। इस प्रश्न का पूर्ण उत्तर देने के लिए बेंथम ने अपने द्वारा रचित ग्रंथों में कोई प्रयास नहीं किया है। अपनी प्रारम्भिक-पुस्तक में वह स्पष्ट रूप से यह स्वीकार करता है कि केवल वे ही हित, जिन्हें मनुष्य हर समय विचार के योग्य प्रेरक के रूप में पाता है, उसके अपने हैं और वह यह मानने के लिए आगे नहीं आता है कि परिणामों का सम्पूर्ण ज्ञान सामान्य सुख को साध्य बनाने के लिए सदैव ही एक यथोचित प्रेरक प्रस्तुत कर सकेगा। अपनी वृहद् रचनाओं के अनेक भागों में कानूनी और संवैधानिकसिद्धांतों के प्रसंग में वह यह मानता हुआ दिखाई देता है कि एक व्यक्ति के हित अपने दूसरे साथियों के हितों से सदैव ही संघर्षरत रहेंगे, जब तक कि हम दण्डों के पुनर्समायोजन के द्वारा विवेकपूर्ण गणना के बेलेंस को बदलते नहीं हैं, किंतु स्पष्ट रूप से इस मान्यता के आधार पर तब तक यह नहीं माना जा सकता है कि एक व्यक्ति सदैव ही अधिकतम सामान्य सुख के द्वारा अपने सर्वाधिक सुख को प्राप्त करेगा, जब तब कि कानूनी और संवैधानिक-सुधार पूर्ण नहीं कर लिए जाते हैं। सम्भवतया, हम यह मान सकते हैं कि बेंथम अपने प्रारम्भिक-युग में एक व्यावहारिक-लोकोपकारी