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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/214 वाक्यों के रूप में विकसित नहीं हो पाया है। अंतःप्रज्ञावादी और उपयोगितावादी-सम्प्रदायों का विवाद अंतःप्रज्ञावादी-सम्प्रदाय का पेले और बेंथम के उपयोगितावाद के साथ से जो विवाद है, वह मुख्यतया कर्त्तव्य की विषय-वस्तु के निर्धारण से सम्बंधित है। इस बात में बहुत ही कम संदेह होगा कि इस कर्त्तव्य की विषय वस्तु के निर्धारण के लिए उन सिद्धांतों और विधियों को पूरी तरह एवं असंदिग्ध रूप से परिभाषित करने के लिए व्यवस्थित एवं सूक्ष्म प्रयास किए गए, जिन पर कि व्यावहारिक-निष्कर्षों के लिए हम निगमनात्मक- तर्क करते हैं, किंतु नैतिक-नियमों का तफसील (ब्यौरा) में निर्धारण करने की पद्धति के सम्बंध में अंतःप्रज्ञावादी और उपयोगितावादी विचारों की भिन्नता वस्तुतः नैतिक-आबंध के अर्थ के बारे में मूलभूत विरोध के कारण अधिक जटिल हो गई है। पेले और बेंथम ने नैतिक-आबंध को नैतिक-नियमों का पालन करने या उन्हें तोड़ने से उत्पन्न होने वाले भावी सुखों या दुःखों का संकल्प पर पड़ने वाला प्रभाव माना था। इसी के साथ, वे दोनों हचीसन के विचारों से सहमति रखते हुए यह मानते हैं कि सामान्य सुख ही इन नियमों का अंतिम साध्य और प्रमापक है। उन्होंने सामान्य सुख के प्रत्यय को स्पष्ट और सही रूप में रखने के लिए उसे निम्न प्रकार से परिभाषित किया, उनके अनुसार, सामान्य सुख या प्रत्यय दुःखों के ऊपर सुखों की अधिकता में निहित है। सुखों और दुःखों का अंतर केवल उनके सातत्य या तीव्रता के रूप में है। उनका यह सिद्धांत अपनी इस सरलता के कारण आकर्षक बन गया, क्योंकि उचित क्या है? और हमें उसे क्यों करना चाहिए?आदि मूलभूत नैतिकप्रश्नों का उत्तर सुख और उसकी निषेधात्मक मात्र दुःख के एक स्पष्ट प्रतीत होने वाले प्रत्यय के रूप में की, किंतु अभी तक विचारे गए इन उत्तरों का एक सिद्धांत की दृष्टि से कोई लौकिक सम्बंध नहीं था। इस आभासी एकता और सरलता ने वस्तुतः मूलभूत विरोधों को छिपा लिया और इस प्रकार आधुनिक नैतिक-विवेचना में संदिग्धता उत्पन्न की। उपयोगितावादी सिद्धांत पेले और बेंथम के दर्शन की मौलिकता नए सिद्धांतों के निर्माण की दृष्टि से अपेक्षाकृत कम है। उनकी मौलिकता विस्तृत या तफसील- पूर्वक विवेचन करने की पद्धति में निहित है। पेले ने अम्ब्राहम टूकर उटपटांग और अस्तव्यस्त हुए विचारों से युक्त किंतु मौलिक एवं सुझावात्मक रचना के प्रति
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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