SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/207 भाग है, जो सम्पत्ति का सम्मान करता है, वह पूरी तरह से रोमन विधिशास्त्र के पारम्परिक सिद्धांतों को अंतिम वैधिक सत्य मानने को तैयार है, जो सम्पत्ति के अधिकार को प्रथम स्वामित्व, श्रम, उत्तराधिकार और दान से सम्बंधित करता है, इस प्रकार वह आंशिक रूप से अचेतन स्तर पर नीतिशास्त्र के अंतर्गत दार्शनिक पद्धति में उस एक सामान्य परिवर्तन का पूर्वानुमान कर लेता है, जिसे हम सहजबोध के दर्शन के संस्थापक रीड के नाम के साथ जोड़ते हैं। __अंततोगत्वा मानव प्रकृति में निष्काम आवेगों की उपस्थिति की बटलर और शेट्सबरी की धारणाओं की सिद्धि के पश्चात् प्राइस कडवर्थ और क्लार्क की अपेक्षा इस बात पर बल देने में अधिक स्पष्टता और साहस का परिचय देता है कि एक सदाचारी व्यक्ति सत्कर्मों का चयन उनके औचित्य के कारण ही करता है। आगे बढ़कर वह तो यहां तक कह देता है कि एक कार्य अपने नैतिक मूल्य को उस अनुपात में खो देता है, जिस अनुपात में वह प्राकृतिक अभिरुचि से किया जाता है। रीड (1710-1796) इसी दूसरे दृष्टिकोण के आधार पर रीड अपनी रचना- ऐसेज आन दि एक्टिव पायरस् आफ ह्यूमन-माइण्ड (1788) में एक ऐसा निष्कर्ष प्रस्तुत करता है, जो सहजबुद्धि से अधिक संगति रखता है। वह लिखता है कि कोई भी कार्य इस अर्थ में नैतिक शुभ नहीं हो सकता, जब तक कि वह जिसके लिए उचित है, उस पर कुछ प्रभाव नहीं डालता है। यह बात आंशिक रूप में तो इस कारण मान ली गई कि रीड का नैतिक मनोविज्ञान प्राइस की अपेक्षा अधिक स्पष्ट रूप से बटलर के द्वारा निर्धारित दिशा में विकसित हुआ है। बटलर के समान वह भी मानता है कि (1) किसी कार्य के बौद्धिक एवं नियामक सिद्धांतों में और (2) उन अबौद्धिक आवेगों में, जिनके नियमन की आवश्यकता है, एक मौलिक अंतर है। इसके साथ ही वह यह भी मानता है कि जहां तक ये अबौद्धिक आवेग प्राकृतिक हैं, वहां तक उनके क्रिया-कलापों का एक वैध क्षेत्र है। वे समान और व्यक्ति के शुभ की ओर प्रवृत्त होते हैं और मनुष्य में निहित बौद्धिक सिद्धांत के वस्तुतः अवियोग्य पूरक हैं । क्रियाओं के अबौद्धिक प्रेरकों को वह दो भागों में विभाजित करता है- (1) वे यांत्रिक मूल प्रवृत्तियाँ और आदतें, जो कि बिना किसी संकल्प, प्रयोजन या विचार के क्रियाशील होती हैं और (2) वे प्राणीय व्यवहार के सिद्धांत जो संकल्प और प्रयोजन से क्रियाशील होते हैं, किंतु जिस
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy