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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/18 को भी आधुनिक नैतिक विवेचनाओं की पूर्वपीठिका या उनका एक आवश्यक अंग मान लिया गया है। संकल्प की स्वतंत्रता नैतिकता के विधिपरक दृष्टिकोण के द्वारा संकल्प की स्वतंत्रता के प्रत्यय की विवेचना प्रमुख एवं महत्वपूर्ण बन गई है। एक सामान्य व्यक्ति, यदि उसे यह ज्ञान भी हो कि वह शुभ क्या है और उसके ऐच्छिक कार्यों के द्वारा किस प्रकार प्राप्तव्य है तो वह स्वाभाविक रूप से यह विचार नहीं करता है कि अपने शुभ को प्राप्त करने के लिए वह स्वतंत्र है अथवा नहीं है। किंतु जब आचरण को उन विधि-विधानों के आधार पर परखा जाता है जिनका उल्लंघन करने पर दण्ड दिया जा सकता है तो यह प्रश्न स्पष्ट एवं आवश्यक हो जाता है कि जिन विधि-विधानों के आधार पर उसका परीक्षण किया गया है उनके पालन करने में वस्तुतः वह सक्षम था अथवा नहीं। क्योंकि यदि उनका पालन करने में सक्षम ही नहीं था, तो फिर उसे दंड देना न्याय पूर्ण नहीं होगा। उपसंहार अंत में अधिक व्यापक रूप से विचार करने पर नीतिशास्त्र की विषय वस्तु में निम्न बातों का समावेश होता है - 1. मनुष्य के वैयक्तिक कल्याण या शुभ के घटकों और स्थितियों की खोजबीन करना, जो कि प्रमुखतया (अ) सद्गुण एवं (ब) सुख के सामान्य स्वरूप एवं सुख के विशेष वर्गों और इन साध्यों की उपलब्धि के प्रमुख साधनों की समीक्षा का रूप ले लेती है। 2. कर्त्तव्य और नियम (जहां तक कि उनका सद्गुणों से विभेद किया जाता है) के सिद्धांतों और उनके महत्वपूर्ण विवरणों की छानबीन करना। 3. जिसके द्वारा कर्तव्य का बोध होता है उस नैतिक विवेक शक्ति के स्वरूप एवं मलस्रोत के सम्बंध में विचार करना और सामान्य तथा मानवीय कार्यों में बुद्धि के योगदान को स्पष्ट करना एवं मानव की विभिन्न वासनाओं एवं कामनाओं से बुद्धि के सम्बंध के बारे में विचार करना। 4. मानवीय संकल्प की स्वतंत्रता के प्रश्न की समीक्षा करना। ___जहां तक मानवीय शुभ को विश्व-शुभ के अंतर्गत माना जाता है या उसके समान माना जाता है नैतिकता को ईश्वर निर्मित विधान माना जाता है। नीतिशास्त्र धर्मशास्त्र से सम्बंधित हैं। इसी प्रकार जहां तक वैयक्तिक कल्याण सामाजिक कल्याण के साथ जुड़ा हुआ है नीतिशास्त्र राजनीतिशास्त्र से सम्बंधित है। पुनश्च, यदि हम विधिशास्त्र को राजनीतिशास्त्र से अलग करे तो जहां तक नैतिकता का स्वाभाविक
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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