________________
नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/197 दोनों पक्षों की ओर से प्रयत्न अपेक्षित है। दर्शक को सम्बंधित व्यक्ति के स्थाईभावों (भावनाओं) में प्रवेश करना होता है और सम्बंधित व्यक्ति को अपने संवेगों को इस प्रकार प्रकट करना या कम से कम उनकी बाह्याभिव्यक्ति करना होती है, ताकि दर्शक में उसके समान भाव को जाग्रत कर सके। दर्शक को प्रभावित करने वाले व्यक्तियों को ऐसा प्रयत्न उस सीमा तक करना होगा, जो कि दर्शक को आश्चर्य में डाले एवं उसे प्रसन्न करे। ऐसे लोगों को हम आत्मपीड़न और आत्मसंयम के कठोर और समादरणीय सद्गुणों से युक्त मानते हैं, जबकि मानवता का सौम्य सद्गुण सहानुभूति की उस मात्रा में निहित होता है, जो अपनी अनपेक्षित एवं अति संवेदनशील कोमलता एवं दयालुता के द्वारा आश्चर्यचकित करे। यद्यपि सौम्य सद्गुण के सम्बंध में दर्शक का न केवल दयालुता के संवेग से युक्त होकर सहानुभूति प्रदान करना है, अपितु 1 उस सुख में भी, जो सदयता अपने पात्र को प्रदान करती है और 2 (उस ज्ञापित होने वाली) कृतज्ञता से भी, जो उस (सद्गुण) को उद्दीप्त करती है।
सहानुभूति की इसी अंतिम प्रक्रिया के कारण ही हमें सद्गुणात्मक कार्य में अच्छाई का बोध होता है। हम तब ही किसी कार्य को या कर्ता को अच्छा मानते हैं, जब कि वह कृतज्ञता ज्ञापन के लिए एक सम्यक् एवं स्वीकृत विषय प्रतीत हो। यह कि जब हम एक तटस्थ साक्षी के रूप में उस कृतज्ञता भाव से, जिसे वह कार्य उन लोगों में, जो उससे लाभान्वित हुए हैं, उद्दीप्त करता है या सामान्यतया उद्दीप्त करेगा, सहमति रखते हैं। किंतु हम कृतज्ञता के भाव से हृदय से तब तक सहमति नहीं रखते हैं, जब तक कि हम उस कार्य के उद्दीप्त करने वाली प्रेरणा से सहानुभूति नहीं रखे। इस प्रकार अच्छाई का बोध एक मिश्रित स्थाई भाव है जो दो भिन्न-भिन्न संवेगों का बना हुआ है (1) कर्ता के स्थाई भावों के प्रति प्रत्यक्ष सहानुभूति और (2) कर्ता के कार्यों से लाभान्वित होने वाले व्यक्तियों की कृतज्ञता भावना के साथ परोक्ष सहानुभूति। यह परवर्ती तत्त्व ही प्रभावशाली तत्त्व हैं इसी प्रकार बुराई का बोध भी बुरा कर्म करने वाले की भावना के प्रति प्रत्यक्ष घृणा और उस बुराई से पीड़ित होने वाले व्यक्ति की नाराजगी के साथ परोक्ष सहानुभूति से बनता है। यह सहानुभूत्यात्मक क्रोध ही उसका प्राथमिक घटक है, जो दूसरे को दी गई पीड़ा के लिए दण्ड की मांग करने एवं दण्ड का अनुमोदन करने के लिए हमें प्रेरित करता है और जिसे हम न्याय का बोध कहते हैं।
___ सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए ऐसे दण्ड के महत्त्व का विचार इस स्थाईभाव का गौण व द्वितीयक स्रोत है।