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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 195 प्राणी उसमें से केवल एक ही उपयुक्त विषय है। इसके अतिरिक्त भी उसकी नैतिक अनुमोदन की धारणा की अस्पष्टता उपयोगी और रुचिकर गुणों की उस सूची से प्रकट हो जाती है, जिसे वह अनुमोदन के योग्य मानता है, जिसमें समीचीन नैतिक अच्छाइयों के साथ केवल बौद्धिक उपलब्धियों को अविवेकपूर्ण ढंग से मिला दिया गया है 32, इसलिए यह स्वाभाविक ही था कि उसने नैतिक स्थाईभावों के उस विशिष्ट गुण को छोड़ दिया, जिसकी व्याख्या की आवश्यकता थी। इस समस्या का मौलिक एवं उत्तम समाधान उसके समकालीन एवं मित्र एडमस्मिथ के द्वारा दिया गया । एडम स्मिथ (1723 - 1790)
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एडमस्मिथ ह्यूम के समान ही सहानुभूति को ऐसा अंतिम घटक मानता है, जिसमें नैतिक स्थाईभाव का विश्लेषण किया जा सकता है। वह यह भी बताता है कि विशिष्ट नैतिक इंद्रिय को स्वीकार करने का कोई आधार नहीं है। वह सद्गुण के सुखद परिणामों में निहित सहानुभूत्यात्मक सुख की वास्तविकता या महत्व के बारे में विवाद में भी नहीं पड़ता है, जबकि ह्यूम इस पर अधिक बल दिया था, फिर भी वह यह मानता है कि कठोर परीक्षण के पश्चात् सामान्य रूप से हम यह पाएंगे कि मनस् का कोई भी गुण सद्गुण के रूप में स्वीकृत नहीं है, जबकि ऐसे गुण, जो व्यक्ति स्वयं को या दूसरों को उपयोगी या रुचिकर हैं और सद्गुण के रूप में मान्य हैं, किंतु उन्हें मान्य करने में प्रकृति ने हमारे अनुमोदन के स्थाईभावों को व्यक्ति और समाज दोनों की सुविधा के साथ आनंदपूर्वक समायोजित कर दिया है, तब भी वह मानता है कि ये स्थाईभाव मूलतया एवं आवश्यक रूप से किसी उपयोगिता के प्रत्यक्षीकरण से उत्पन्न नहीं होते हैं। यद्यपि निस्संदेह ऐसा प्रत्यक्षीकरण उन्हें व्यापक एवं सजीव बना देता है, साथ ही विवेक न्याय और परोपकार के अनेक महत्वपूर्ण उदाहरणों में सद्गुण के अनुकूल प्रभाव का बोध सदैव ही हमारे अनुमोदन (पसंदगी) के विशेष एवं बहुधा बड़े भाग का निर्माण करता है, तथापि यह असम्भव है कि उस उपयोगिता के अतिरिक्त, जिसके आधार पर हम खाने वाली संदूक की अनुशंसा करते हैं हमारे पास किसी व्यक्ति की प्रशंसा करने का कोई दूसरा तर्क हो । परीक्षण के उपरांत हमें यह पता चलेगा कि किसी मानसिक स्वभाव की उपयोगिता कभी कभी ही प्राथमिक अनुमोदन का आधार बनती है, साथ ही यह कि अनुमोदन के स्थाईभाव में उपयोगिता के प्रत्यक्षीकरण से