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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 184 होते हैं, जबकि स्वहितों की गणना मात्र संभावित निष्कर्ष ही दे पाते है और जहां दो प्रभु-स‍ -सत्ताओं में विरोध हो, तो अधिक निश्चित आबंध (नैतिक बाध्यता) कम निश्चित आबंधों (नैतिक बाध्यताओं) को पूरी तरह समाप्त कर देंगे और उनका स्थान ले लेंगे 241 अब हम बटलर के नैतिक सिद्धांतों को सुरक्षित आशावाद पर आधारित कह सकेंगे। वह बताता है कि जब तक कि उनके विरुद्ध कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया जाता, तब तक यह मानना बौद्धिक है कि दो आंतरिक प्रभुसत्ताएं, जिनके अंतर्गत प्रकृति ने हमें रखा है संघर्षशील न होकर संगतिपूर्ण हैं और ऐसा प्रमाण प्रस्तुत कर पाना असम्भव है। उसका कारण स्वार्थवादी गणना की अपरिहार्य अनिश्चितता है। उसने सद्गुण की सद्गुणी व्यक्ति के सुख के साथ परम संगति को स्वीकार करने के लिए एक मनोवैज्ञानिक कारण हमारी अच्छी और बुरी इच्छाओं की विवेक बुद्धि के रूप में खोजा है, जो कि एक निर्विवाद प्राकृतिक साहचर्य के रूप में हमारे नैतिक शुभ और अशुभ के विवेक की सहगामी होती है। मानव प्रकृति के नियामक सिद्धांतों के द्वैत के सम्बंध में बटलर का कथन नैतिक चिंतन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि यह हमें आधुनिक आंग्ल नैतिक चिंतन और प्राचीन ग्रीक रोमन नैतिक चिंतन के बीच कहे हुए उस महत्वपूर्ण मौलिक अंतर को स्पष्ट करता है, जो कि बहुत ही आश्चर्यजनक है। एक ओर बटलर IT प्रकृति के अनुसार जीवन जीने का सामान्य सिद्धांत स्टोइकवाद से लिया गया है, तो दूसरी ओर आवेगों पर नियंत्रण रखने वाली मानव प्रकृति की धारणा स्पष्ट रूप से प्लेटोवादी है। किंतु प्लेटोवाद, स्टोइकवाद एवं सामान्य रूप से ग्रीक नैतिक चिंतन बुद्धि की नियामक शक्ति को देखा जा सकता है, तथापि वहां बुद्धि के अंतर्गत केवल एक ही नियंत्रक और शासन शक्ति को स्वीकार किया गया है, जबकि आधुनिक नैतिक चिंतन में बुद्धि दो रूपों में कार्य करती है, एक तो यह सर्वमंगलकारी बुद्धि के रूप में और दूसरे स्वहितकारी बुद्धि के रूप में। इस प्रकार बुद्धि अंतर्विवेक और आत्मप्रेम- इन दो रूपों में पाई जाती है। यह द्वैतवाद क्लार्क के विवेकपूर्ण आचरण के सिद्धांत में अस्पष्ट रूप से दिखाई देता है । इस द्वैत को शेफ्ट्सबरी के सद्गुणों के आबंध में भी अव्यक्त रूप से देखा जा सकता है, किंतु इसकी स्पष्ट स्वीकृति बटलर के सिद्धांतों में मिलती है, जिसका पूर्व अनुभाव ओत्सटन के (1722)
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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