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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 183 अपेक्षा इनके सैद्धांतिक सम्बंधों पर विचार करें। वह इन दोनों को स्वतंत्र सिद्धांत मानता है और जहां तक वे प्राधिकार में एक दूसरे का सहयोग करते हैं, उस स्थिति में भी यह स्वाभाविक नहीं होगा कि उनमें से कोई भी एक दूसरे पर शासन करें। बौद्धिक आत्मप्रेम और अंतर्विवेक मानव प्रवृत्ति के सर्वोत्तम और मुख्य सिद्धांत है। क्योंकि कोई भी कार्य दूसरे सिद्धांतों का उल्लंघन करके भी यदि इन दोनों सिद्धांतों के आधार पर किया गया है तो वह मानव प्रकृति के अनुरूप ही होगा, किंतु यदि इनमें से किसी भी सिद्धांत का उल्लंघन करके किया गया है, तो वह मानव प्रकृति के प्रतिकूल हो जाएगा। वह इससे भी आगे बढ़कर यहां तक कहता है कि इन दोनों के बीच कभी भी कोई असंगति (विरोध) होना असम्भव है और यदि कभी कोई विरोध होता भी है, तो अंतर्विवेक के द्वारा उनमें समन्वय करना होगा, क्योंकि सुख और दुःख विचार दूसरे सब विचारों से हमारे लिए निकटस्थ और अधिक महत्वपूर्ण हैं । यद्यपि सद्गुण या नैतिक ईमानदारी या उचित या शुभ के प्रति अनुराग, वस्तुतः और प्रयत्नों में निहित नहीं है, तथापि जब भी हम शांति से बैठकर विचार करेंगे, हम इस या अन्य किसी प्रयत्न को अपने आप के प्रति तब तक न्यायपूर्ण सिद्ध नहीं कर पाएंगे, जब तक कि हमें यह विश्वास न हो जाए कि यह हमारे सुख के लिए है या कम से कम उसका विरोधी नहीं है 22, साथ ही यह भी कि अंतिम रूप से विचार व्यक्ति के हित के लिए ही होगा। यह बात शेफ्ट्सबरी के तर्कों में भी मान ली गई थी, यद्यपि औपचारिक रूप से उसके द्वारा ऐसा नहीं कहा गया। उनका सारा बल यद्यपि सद्गुण के निष्काम आवेग के लिए है, तथापि यहां वह एक प्रश्न उठाता है कि सद्गुण के लिए क्या आबंध (नैतिक बाध्यता) है और बुद्धि को इसे क्यों अंगीकार करना चाहिए? तब उसके लिए स्वहितवादी दृष्टिकोण के अतिरिक्त इन प्रश्नों का उत्तर दे पाना कठिन है। उसका आबंध स्वहितं का आबंध है और उसकी बौद्धिकता भी पूरी तरह आत्मप्रेम के लिए है 23, यद्यपि बटलर की मान्यता है कि उसने अंतर्विवेक की प्रामाणिकता को स्थान देकर शेफ्ट्सबरी के दृष्टिकोण की कमियों को दूर कर दिया है, साथ ही यह संशोधन उन संशयवादियों के लिए भी मूलतया महत्त्वपूर्ण है, जो कि इस संसार में सद्गुण की सुखात्मक प्रवृत्ति को नहीं मानते हैं । बटलर का विचार है कि यदि अंतर्विवेक की स्वाभाविक प्रामाणिकता को स्वीकार कर लिया जाए, तो ऐसा संशयी व्यक्ति भी धार्मिक अंकुश से स्वतंत्र सांसारिक हितों की अपेक्षा कर्तव्य के वरण के लिए बौद्धिक रूप से कोई संशय नहीं कर सकेगा, क्योंकि अंतर्विवेक के निर्देश स्पष्ट और निश्चित
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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