SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/174 होगा, जिसका वह एक अंश है और हमें ऐसा करना भी चाहिए । इसी आधार पर हम उसे अच्छा कह सकते हैं, जब कि उसके आवेग और स्वभाव उस व्यापक पूर्ण के हित को आगे बढ़ाने में संतुलित एवं क्रमबद्ध हो। पुनः, हम उस व्यक्ति को अच्छा केवल इसलिए नहीं कहेंगे कि उसकी बाह्य-क्रियाएं कल्याणकारी परिणामों को प्रस्तुत करती हैं। जब हम किसी व्यक्ति को अच्छा कहते हैं, तो हमारा तात्पर्य यह होता है कि बिना किसी बाह्य दबाव के उसका स्वभाव और आत्मीयता (स्नेह) ऐसी है, जो कि स्वतः ही मानव जाति के सुख एवं कल्याण की वृद्धि के लिए अभिमुख है। हाब्स का नैतिक विचार यदि उसे शासन के नियम से मुक्त कर दिया जाए, तो वह अपने साथियों के लिए प्रत्यक्ष रूप में विनाशकारी ही सिद्ध होगा, जिसे हम साधारणतया अच्छा व्यक्ति कहने के लिए राजी नहीं होंगे। शुभत्व या अच्छाई संवेदनशील प्राणी में प्रथमतया उसके अनासक्त स्नेह या निष्काम प्रेम में निहित होती है, जिसका कि सीधा उद्देश्य दूसरों का कल्याण होता है, किंतु शेफ्ट्सबरी की मान्यता है कि ऐसे परोपकारी सामाजिक आवेग सदैव ही शुभ नहीं होते और दूसरे, ये आवेग एक व्यक्ति को अच्छा बनाने के लिए आवश्यक नहीं हैं। इसके विपरीत, वह यह स्पष्ट करने के लिए उत्सुक है कि किस प्रकार लोक-मंगलकारी आत्मीयता अर्थात् करुणा या वात्सल्यभाव इतने महान् हों कि वे दूसरे प्रकार के ममत्वों की स्वाभाविक क्रिया एवं शक्ति का आकर्षण कर सकें और साथ ही इतने व्यापक हों कि वे अपने आत्मप्रेम को पराजित कर सके और अपने को वैयक्तिक हितों की उपलब्धि से वंचित रख सकें। पुनः, वह यह भी बताता है कि आत्मरक्षण की ओर प्रवृत्त आवेगों का अभाव किस प्रकार जाति रक्षण के लिए हानिकारक हो सकता है और इसलिए बुरा भी हो सकता है। संक्षेप में, अच्छाई या शुभत्व दोनों ही प्रकार के आवेगों के ऐसे सह-अस्तित्व पर निर्भर है, जिसमें प्रत्येक अपने समुचित अनुपात में सापेक्षिक रूप से उपस्थित हो, ताकि विभिन्न पक्षों के मध्य एक न्याययुक्त समानानुपातिकता, संतुलन और संगति बनी रहे। शुभत्व मानव जाति के कल्याण की अभिवृद्धि की प्रवृत्ति के रूप में सम्यक् अंशों और अनुपातों की कसौटी के रूप में माना जा सकता है। इसकी स्थापना के पश्चात् शेफ्ट्सबरी का मुख्य तर्क यह सिद्ध करना है कि यह वैयक्तिक और सामाजिक प्रेम के संतुलन एवं मिश्रण द्वारा स्वाभाविक रूप से लोक-कल्याण की ओर प्रवृत्त होता है और मनुष्यों के वैयक्तिक सुख में सहायक होता है। शेफ्ट्सबरी आवेगों को तीन श्रेणियों में विभाजित करता है- (1) स्वाभाविक स्नेह - जो कि प्रेम, आत्म
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy