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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/164 बुद्धि की प्रत्येक क्रिया में आत्मा सरलतापूर्वक उसे प्राप्त कर सकती है, जो कि सरल एवं निरपेक्ष रूप में सर्वोत्तम है। यह दृष्टिकोण वस्तुतः मूर का प्रतीत नहीं होता है। उसकी व्याख्या यह है कि यद्यपि निरपेक्ष शुभ प्रज्ञा के द्वारा जाना जा सकता है, किंतु उसकी मधुरता और सुवास को प्रज्ञा नहीं जान सकती है, अपितु उसे उसके द्वारा जाना जा सकता है, जिसे हम अन्तर्दृष्टि कहते हैं और इसी मधुरता और सुवास में सद्गुणात्मक आचरण का प्रेरक निहित है। नीतिशास्त्र सम्यक् प्रकार से एवं आनंद से जीने की कला है। सच्चा आनंद उस सुख में निहित है, जिसे आत्मा सद्गुणों के बोध के द्वारा प्राप्त करता है। संक्षेप में, मूर का प्लेटोवाद नैतिक क्रियाओं के चरम प्रेरक की धारणा में वस्तुतः हाब्स के समान ही सुखवादी प्रतीत होता है। केवल अंतिम प्रेरक के रूप में जिस भावना को यह अपील करता है, उस भावना का अपेक्षित निर्णायक क्षमता के साथ विशिष्ट नैतिक विशुद्धता से युक्त मन ही आदतन अनुभव कर सकता है। नैतिकता प्रकृति के नियम के रूप में यद्यपि यह देखा जाता है कि मूर ने अपने ही समान अपने पड़ोसी के कल्याण के निरपेक्ष सिद्धांत को ईसाई धर्म में दर्शित पूर्ण व्यापकता के साथ उपस्थित किया है और परोपकारिता की वृत्ति के उच्चतम स्वरूप को ही अपने पड़ोसी के प्रति एवं ईश्वर के प्रति प्रेम माना है, किंतु जब वह सद्गुणों का वर्गीकरण एवं विवेचना करता है तो वह परोपकार को उदारता के परम्परागत रूप के सिवाय स्वतंत्र स्थान नहीं दे पाता है। इस सम्बंध में वह प्लेटो और अरस्तू के प्रभाव से बहुत अधिक प्रभावित है। इस सम्बंध में उसका चिंतन कम्बरलैण्ड का स्पष्ट विरोधी प्रतीत होता है। कम्बरलैण्ड (1632-1718) कम्बरलैण्ड का नीति सम्बंधी ग्रंथ (1672) भी यद्यपि मूर के समान ही लेटिन में ही लिखा गया है, फिर भी उसके नैतिक विचार पूर्णतया आधुनिक है। कम्बरलैण्ड एक कुशाग्रबुद्धि के मौलिक चिंतक हैं। उन्होंने किसी प्रख्यात नीतिवेत्ता की अपेक्षा भी अधिक विचार-सामग्री प्रस्तुत की है, फिर भी उनकी शास्त्रीय शैली, असंगतता एवं विस्तृतता तथा शास्त्रीय-भाषा के साथ-साथ तथ्यपूर्ण विवेचना की विस्तृत व्याख्या शैली के बावजूद भी स्पष्टता की कमी के कारण उनके ग्रंथ लोकप्रिय न हो पाए। ___ सबका सामान्य शुभ ही वह परमसाध्य एवं नैतिक प्रमापक है, जिसके आधार पर अन्य समस्त नैतिक नियम और सद्गुणों का निर्धारण होना चाहिए। इस
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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