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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 160 प्रमाणक है और प्रत्येक के लिए निरपेक्ष रूप से पालनीय है, जब तक व्यक्ति उसके संरक्षण का लाभ उठाता है, उसे कोई भी किसी भी बड़े नुकसान की धमकी नहीं दे सकता है, क्योंकि उसके आदेशों के प्रति उंगली उठाना उस अराजकता की ओर प्रथम कदम होगा, जो कि विधि निर्माण एवं प्रशासन में सभी विशेष कमजोरियों को पैदा कर महान संकट का निर्माण कर देगी। अब यह समझना सरल होगा कि सन् 1640 ई. की संकटकालीन अवस्था में जब हाव्स का नीतिपरक राजनीतिक दर्शन लिखित रूप में सामने आया, संघर्षरत सम्प्रदायों के कोलाहल से उबा हुआ एक शांतिप्रिय दार्शनिक उस वैयक्तिक अंतरात्मा के दावों को कैसे स्वीकार कर सकेगा, कि मूलतः अराजक है और सामाजिक कल्याण के लिए सबसे अधिक संकटपूर्ण चुनौती यद्यपि व्यवस्था के प्रति मनुष्य की इच्छा कितनी ही तीव्र क्यों न हो, किंतु (सामाजिक शांति हेतु) सामाजिक कर्तव्यों का वह दृष्टिकोण, जिसमें सभी ओर स्वार्थवादिता हो और असीम सत्ता, यही तो एक घातक' विरोधाभास ही प्रतीत होता है, चाहे वह ऐसा न हो यह घातक विरोधाभास हो या नहीं हो तथापि हाब्सवाद में एक मौलिकता, एक बल और एक आभासी संगति तो है, जो उसे निश्चित रूप से प्रभावशाली बनाती है। वस्तुतः दो पीढ़ियों तक दार्शनिक आधार पर नैतिकता के निर्माण के लिए किए गए प्रयत्न किसी न किसी रूप में हाब्स के सिद्धांत के प्रतिउत्तर ही थे। एक नैतिक दृष्टिकोण से हाव्सवाद अपने को स्वाभाविक रूप से दो भागों में बांटता है। ये दोनों विभाग केवल हाब्स के विशेष राजनीतिक सिद्धांतों में ही एक संगतियुक्त पूर्ण के रूप में ही जुड़ते हैं, किंतु दूसरे रूपों में अनिवार्यतया एक-दूसरे से सम्बंधित नहीं है। एक ओर उसकी धारणा का सैद्धांतिक आधार स्वार्थवाद है, उदाहरणार्थ वह कहता है कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए यही स्वाभाविक और तर्कसंगत है कि उसे पूर्णरूपेण अपने स्वयं के संरक्षण या सुख के लिए प्रयत्न करना चाहिए, जबकि दूसरी ओर कर्तव्यों का तफसील से व्यावहारिक रूप में निर्धारण करते समय उसका सिद्धांत सामाजिक नैतिकता को पूरी तरह से समाज संस्था पर और विधायक नियमों पर निर्भर बनाता है। इस प्रकार वह शुभ और अशुभ की सापेक्षता को दो अर्थों में स्वीकार करता है। किसी भी नागरिक के लिए एक दृष्टिकोण से शुभ और अशुभ को क्रमशः उसकी इच्छा अथवा घृणा के रूप में परिभाषित किया जाता है, किंतु दूसरे दृष्टिकोण से वे व्यक्ति के लिए उसके संप्रभु शासक के द्वारा निर्धारित होते हैं। हाब्स के सिद्धांत का यह दूसरा पक्ष ही उसके आलोचकों की प्रथम पीढ़ी की आलोचना का -
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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