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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/153 सुधारवाद के कारण राजनीतिक सम्बंधों के क्षेत्र में स्वतंत्र व्यावहारिक सिद्धांतों की आवश्यकता का अधिक तीव्रता से अनुभव किया गया था। 16 वीं शती में धार्मिक युद्धों के कारण राजनीतिक और व्यावहारिक जीवन के क्षेत्र के नियंत्रण को निम्न दो रूपों में बहुत ही अधिक प्रभावित किया प्रथम तोशासक के अधिकार और शासित के कर्तव्यों सम्बंधी शंकाओं की तीव्रता और आवश्यकता के रूप में, जिन्हें शासक और शासित के स्वीकृत विभाजन ने अपरिहार्य रूप से उठाया था, दूसरे, उस अपूर्ण किंतु वास्तविक नियामक प्रभाव का विनाश, जो कि ईसाई धर्म की एकता के द्वारा पहले पश्चिमी यूरोप पर लागूथा । लोक-नियम की उत्पन्न अस्तव्यस्त अवस्था के फ लस्वरूप कैथोलिक और प्रोटेस्टन्ट-दोनों ही समुदायों के अनेक लेखकों ने नियामक सिद्धांतों के इस अभाव की पूर्ति के लिए प्राकृतिक नियम के इस प्रत्यय को विकसित किया, जिसे मध्ययुगीन दार्शनिकों ने अंशतः सिसरो एवं आगस्टिन की परम्परा से और अंशतः रोमन न्यायशास्त्र के आधार पर पुनर्जीवित किया था, किंतु थामस एक्वीनास के अनुसार यह पूरी तरह से बौद्धिक आधार पर निर्मित है और प्रकाशना अर्थात् श्रुति के आधार पर निकाले गए निष्कर्षों से स्वतंत्र है। दूसरे, परम्परागत धर्मशास्त्री नीतिवेत्ताओं के विचारों का विवेचन करने में भी मैंने अपना ध्यान पूरी तरह से उन्हीं सिद्धांतों पर केंद्रित किया है, जो कि उनके रचयिता की दृष्टि से विशुद्ध रूप में बौद्धिक आधार पर खड़े हैं। एक्वीनास के दर्शन में प्रस्तुत प्राकृतिक नियम का यह प्रत्यय प्रथमतः न्यायशास्त्र या राजनीतिशास्त्र से सम्बंधित है, किंतु अपने सीमित अर्थ की अपेक्षा यह नीतिशास्त्र को अधिक व्यापक अर्थ में रखता है। प्राकृतिक नियम की परिभाषा का अर्थ पारस्परिक आचरण के वे नियम मात्र नहीं, जिन्हें पालन करने के लिए मनुष्य को सम्यक्तया बाध्य किया जा सकता है, किंतु वे नियम हैं, जिनका पालन करना चाहिए, जहां तक कि वे आगमशास्त्रीय ज्ञान के प्रकाश से भिन्न मानव के प्राकृतिक ज्ञान के प्रकाश से जान सकते हैं। जिस प्रकार नीतिशास्त्र और न्यायशास्त्र के क्षेत्र में स्पष्ट विभाजक रेखा का अभाव है उसी प्रकार प्राकृतिक नियमों के नीतिशास्त्रीय और न्यायशास्त्रीय -दोनों क्षेत्रों के सम्बंध में भी स्पष्ट विभाजक रेखा का अभाव है। ग्रोटीअस के पूर्व के लेखकों में इन दोनों के मध्य सामान्यतया स्पष्ट विभाजन नहीं पाया जाता है।
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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