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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/ 13 शारीरिक स्वास्थ्य में निहित नहीं है। हमारा अनुभव हमें यह भी बताता है कि सम्पत्ति अथवा शारीरिक शक्ति कभी-कभी तो दुराचरण और निर्दयता के कारण बन जाते हैं। सामान्यतया किसी व्यक्ति को उसके कार्यों के बाह्य परिणाम के आधार पर ही साहसी, न्यायी एवं संयमी आदि सद्गुणों या इनके विपरीत दुर्गुणों से युक्त, किंवा अच्छा या बुरा माना जाता है, किंतु कोई भी प्रबुद्ध व्यक्ति सामान्यतया इस बात को स्वीकार करेगा कि ऐसे नैतिक निर्णयों में असत्यता या भ्रांति की सम्भावना रही हुई है। वस्तुतः हमें यही दृष्टिकोण उचित प्रतीत होता है कि कर्ता की मनःस्थिति एवं उसका मनोविन्यास तथा कर्म का प्रयोजन, उद्देश्य एवं प्रेरक ही नैतिक दृष्टि से कर्म के शुभत्व अथवा अशुभत्व के निर्धारक हैं। दूसरी ओर, जब हम बाह्य परिणामों के विश्लेषण के द्वारा भी जिन्हें वस्तुतः शुभ या अशुभ कहते हैं, वे भी कर्म के बाह्य परिणाम नहीं होकर किसी संवेदनशील प्राणी या मनुष्य की भावनाओं पर अथवा मानवीय संकल्प या चरित्र पर कर्म का पड़ने वाले प्रभाव ही हैं। इस प्रकार नैतिक दर्शन के लगभग सभी सम्प्रदाय इस विषय में सहमत है कि उनकी गवेषणा का मुख्य विषय मानवीय जीवन के मनोवैज्ञानिक पहलू से भी सम्बंधित हैं। चाहे (1) वे यह मानते हों कि मनुष्य का परम श्रेय उसकी उस मनोवैज्ञानिक अवस्था में है, जो केवल संवेदनशील या भावनात्मक है और जिसका तादात्म्य वांछनीय अनुभूति या सुख के किसी न किसी प्रकार से है अथवा सुख की अनुभूतियों का योग है या उन्हीं के वर्ग का है। किंवा (2) वे यह मानते हो कि मानवीय आत्मा का श्रेय या शुभ मुख्यतया अथवा पूर्णतया सद्गुण या कर्त्तव्यपरायणता में निहित है। जब हम उपरोक्त दोनों दृष्टिकोणों को पूर्ण स्पष्ट एवं व्यवस्थित रूप में रखने का प्रयत्न करते हैं, तो हमें अनिवार्यतया पुनः मनोवैज्ञानिक अध्ययन की ओर अग्रसर होना होता है। हमें सुख एवं दुःख के विभिन्न प्रकारों एवं उनकी तीव्रताओं के वर्गीकरण के लिए अथवा विभिन्न सद्गुणों एवं दुर्गुणों के स्वरूप एवं उनके पारस्परिक सम्बंधों का निर्धारण करने के लिए मनोवैज्ञानिक अध्ययन की आवश्यकता होती है। पुनश्च, मानवीय शुभ व्यक्ति के लक्ष्य या बौद्धिक चयन का विषय है। बौद्धिक चयन का अर्थ शुभ को उन ऐन्द्रिक एवं सांवेगिक उद्वेगात्मक तथ्यों से अलग करना है, जो कि व्यक्ति की दृष्टि में उसके वास्तविक शुभ से भिन्न कर्म करने के लिए प्रेरणा देते हैं। बौद्धिक चयन या प्रेरणा का यह प्रत्यय वैचारिक कसौटी पर अनेक कठिनाइयों को उत्पन्न करता है। कुछ विचारक यह मानते हैं कि कर्म करने की इच्छा
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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