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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 106
शाब्दिक श्रद्धा ही है, जो उसे पूरी तरह से अरस्तूवादी होने से रोकती है। 45. इस संतुलन के भी विभिन्न स्तर हैं, किंतु किसी भी स्थिति में यह बहुत अधिक संतुलित नहीं है। यदि हम उस दृष्टि से विचार करें, जिसको अरस्तू के उत्तराधिकारी थियोफ्रेस्टस के द्वारा मानने के कारण आलोचना की गई थी, वह मानता था कि पीड़ा की एक ऐसी मात्रा भी है, जो एक शुभ व्यक्ति को भी सुखी होने से रोकती है। 46. आर्केसिलिअस की नैतिक शिक्षाओं के इस दृष्टिकोण के सम्बंध में झेपर का अनुसरण करना, यह अनेक उद्धरणों पर आधारित है, यद्यपि मैं यह कहना चाहूंगा कि दूसरे विचारक आर्कसिलिअस के सन्देहवाद को पायरो के सन्देहवाद के लगभग अभिन्न ही मानते हैं।
47. एन्टीओक्स के गुरु एवं पूर्वाधिकारी झिलो की स्थिति कार्नडीज और एन्टीओकस के बीच की है और तदनुसार उन्हें चतुर्थ अकादमी के संस्थापक के रूप में माना जाता है, क्योंकि एन्टीओक्स को पांचवीं अकादमी का संस्थापक माना जाता है। यह ध्यान देने योग्य है कि ऐन्टीओकस कुछ स्टोइक विरोधाभासों को अस्वीकार करता है, जैसे सभी बुराईयां समान रूप से पाप हैं, सद्गुण पूर्ण कल्याण के लिए सक्षम है।
सिसरो के द्वारा हम यह भी जानते हैं कि स्टोइको के साथ ही झिलो भी यह मानता था कि मनीषी ही सच्चा, सम्पन्न, सुंदर, स्वतंत्र और शाही व्यक्ति है।
48. लगभग 130 से 110 ई. पू.।
49. स्टोइकों के परम्परागत विरोधी अकादमी के विद्वानों या चक्रमण सम्प्रदायवादियों ने न तो कभी सभी प्रतिस्पर्धी इच्छित विषयों की अपेक्षा सद्गुण की निरपेक्ष वरेण्यता पर और न कभी सद्गुणों की कल्याण के हेतु किसी सीमा तक सक्षमता पर विवाद ही किया । यदि उनका विवाद था, तो सद्गुणों की कल्याण के हेतु पूर्ण सक्षमता पर था।
50. सिसरो अपने को सदैहवादी अकादमी का अनुयायी बताता है, किंतु संशयवाद आस्था अधिक न्याय के एवं अदार्शनिक प्रकार की ही प्रतीत होती है। नीतिशास्त्र की दृष्टि से, जिससे अभी हमारा सम्बंध है, वह सदैहवादी न होकर समन्वयवादी है।
51. हमनें यहां सुख-प्रदाता या सुख के निर्माता पद का प्रयोग किया है,