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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 105 का जीवन नहीं जी सकता है। इस सम्प्रदाय के सबसे अधिक स्पष्टवादी विचारक थियोडोरस ने स्पष्ट रूप से यह बताया है कि किन्हीं विशेष परिस्थितियों में मनीषी भी चोरी, व्यभिचार और धर्म विरोधी आचरण कर सकता है। 40. हेमाक्रिटस के भौतिक शास्त्र में जो महत्वपूर्ण परिष्कार इपीक्यूरस के द्वारा किया गया था, वह अधोगामी अणुओं के सम्बंध में था। वह भी हेमाक्रिटस के समान ही यह मानता है कि पदार्थों के मूलतत्त्व अत्यंत सूक्ष्म रूप से स्वतः विचलन करने की प्रवृत्ति रखते हैं। यह कल्पना अणुओं के संघटन के स्पष्टीकरण के लिए आवश्यक थी। अणुओं के इस संगठन का परिणाम ही सृष्टियों की रचना है । पुनः, इसी धारणा का उपयोग मनुष्यों में संकल्प की स्वतंत्रता की भौतिक व्याख्या के लिए किया गया, जो कि इपीक्यूरस के विचार में नैतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यह संकल्प की स्वतंत्रता की धारणा स्टोइकवाद की मान्यता के विरोध में थी। पूर्व में मैंने यह भी बताया है कि इपी क्यूरस के इस नैतिक दृष्टिकोण की आंशिक पूर्व कल्पना हेमाक्रिटस भी की थी। उसका सिद्धांत हेमाक्रिटीयन और सिरेनेक तत्त्वों के समन्वय से उत्पन्न हुआ माना जा सकता है। 41. यह ध्यान देने योग्य है कि वह अपनी दार्शनिक व्याख्याओं में दासों या स्त्रियों के सहयोग की अवहेलना नहीं करता है। 42. अरस्तू के शिष्यों के प्रति इपीक्यूरस का अंतिम आरोप यह था कि वह अंधविश्वासी है। 43. हमें अरस्तू के द्वारा यह ज्ञात होता है कि यडोकसस ने, जो सम्भवतः किसी समय इस सम्प्रदाय का सदस्य रह चुका था, अपने मुख्य निकाय के विरोध में परम शुभ की विशुद्ध सुखवादी व्यवस्था अपना ली थी और स्पीयू सिपस का सुखवाद विरोधी दृष्टिकोण अस्थायी रहा, क्योंकि क्रान्टोर ने अपने शुभों की सूची में सुख एवं स्वास्थ्य को बाद में और सम्पत्ति को पहले स्थान दे दिया था । 44. यह ध्यान देने योग्य है कि प्लेटो की अकादमी के सम्प्रदाय ने शीघ्र ही नीतिशास्त्र और धर्मशास्त्र के अंतर को तात्त्विक रूप से स्वीकार कर लिया, जिसका प्लेटो के विरोध में अरस्तू ने समर्थन किया था। जैसा कि कहा गया है, झेनोक्रेट्स ने दो प्रकार की प्रज्ञा को अलग-अलग किया है। एक व्यावहारिक प्रज्ञा और दूसरी विमर्शात्मक प्रज्ञा। विमर्शात्मक प्रज्ञा प्रथम कारण और अतीन्द्रिय सत्ता से सम्बंधित है, यह उसकी
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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