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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/102 तादात्म्य करने में अरस्तू प्लेटो और सुकरात का अनुसरण करते हैं। हम यह देख सकते हैं कि शुभ शब्द सद्गुणी व्यक्ति का परिचायक है और सामान्यतया साध्य का पर्यायवाची है, जबकि सुंदर शब्द सद्गुणात्मक कार्य के गुण को अभिव्यक्त करने के लिए चुना गया है, जो किसी भी स्थिति में सद्गुणी कर्ता का साध्य होता है। निस्संदेह अरस्तू इसके सम्बंध में विचार करते समय ग्रीक जनता की सहज बुद्धि का प्रतिनिधित्व करता है। जहां तक सद्गुण सद्गुणी व्यक्ति के लिए स्वतः शुभ है, वहां तक वह शुभ के उस वर्ग का सदस्य है, जिसे हम सुंदर से अलग कर सकते हैं, बाद के ग्रीक दर्शन में सुंदर शब्द नैतिक शुभ के पारिभाषिक शब्द के रूप में अधिक रूढ़ हो गया। सद्गुण ‘अति आधिक्य' और 'अति अभाव' की परस्पर विरोधी गलतियों का सफ लता पूर्वक निरसन करने में अभिव्यक्त होता है। स्वर्णिम माध्य' या अनुभूति की उचित मात्रा और बाह्य क्रिया, जिसमें सद्गुण पाया जाता है, केवल संभावित वैकल्पिक अंतों के मध्य गणितीय औसत के समान नहीं है, वह प्रत्येक स्थिति में कर्ता और कार्य की परिस्थिति के आधार पर निर्धारित होता है। वस्तुतः यह तो अनुचित अंतो में अक्सर एक के निकट होता है। उदाहरणार्थ साहस कायरता की अपेक्षा दुस्साहस के अधिक निकट है। सम्यक् माध्य का असंदिग्ध निर्धारण तो व्यावहारिक प्रज्ञा से युक्त व्यक्ति के तर्क एवं निर्णय के द्वारा ही दिया जा सकता है। 20. मैंने इस पद का परम्परागत अनुवाद किया है। अलग हटना उचित नहीं समझा है, लेकिन मैं यह मानता हूं कि अरस्तू की इस पद का परिभाषा की दृष्टि से इसका अनुवाद साहस की अपेक्षा शूरवीरता का वर्तमान में प्रयोग है, जिसका प्रयोग केवल युद्ध के संदर्भ में ही करते हैं। जैसाकि हम देखते हैं, अरस्तू ने भी इस पद का इसी संदर्भ में उपयोग किया है। 21. मैं अरस्तू के नीतिशास्त्र के भाग 7, जिसमें इस विषय की चर्चा की गई है तथा भाग 5 और 6 को उसी अर्थ में अरस्तू की कृति नहीं मानता हूं, जिस अर्थ में उसका ग्रंथ उसकी कृति है, लेकिन मेरी दृष्टि में इन्हें इस ग्रंथ के सम्पादन करते समय उसके शिष्यों ने उसके शुद्ध सिद्धांतों को स्पष्ट करने के लिए जोड़ दिया है, ताकि वे इस टिप्पणी से सम्बंधित अनुच्छेद (पेराग्राफ) में वर्णित अरस्तू के संक्षिप्त एवं सामान्य दृष्टिकोण के औचित्य को सिद्ध कर सकें। यही बात वाद के न्याय, बौद्धिक अच्छाइयों और व्यावहारिक बुद्धि के सम्बंध में भी है। 22. यह ध्यान रखना होगा कि प्लेटो की शिक्षाओं ने उन्हें पुन: अपने स्थान पर ला
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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