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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 99 तथापि मनुष्य के संदर्भ में नैतिक उत्तमताओं का मुख्य अर्थ वही है, जिसे हम सद्गुण कहते है। 4. हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि इस कथन को उसी विशिष्ट अर्थ में समझा जाना है, जो कि अरस्तू के लिए प्रयुक्त होता है। अरस्तू दर्शन को मानवीय जीवन की अच्छाइयों एवं बुराई के अध्ययन से भिन्न मानता है । 1. उसकी दृष्टि से यह अध्ययन बुद्धि का निम्न कोटि का प्रयास है, क्योंकि दर्शन शाश्वत सत्य का चिंतन है । अरस्तू के दृष्टिकोण में दर्शन जीवन जीने की विधि नहीं सिखाता है, लेकिन फिर भी मानवीय बुद्धि का चिंतन रूप सर्वश्रेष्ठ प्रकार है। 5. हमें यह ध्यान रखना होगा कि झेनोझोन सुकरात को आत्मसंयम का उपदेश देते हुए प्रस्तुत करता है। मुझे उसके आत्मसंयम की व्याख्या उसके दूसरे सिद्धांत के साथ संगतिपूर्ण ढंग से करने में कोई कठिनाई प्रतीत नहीं होती है, यदि हम आत्मसंयम को उस ज्ञान में निहित या उस ज्ञान का अनिवार्य परिणाम माने, जो इंद्रियासक्ति के निम्न मूल्यों की, उनमें निहित हानियों की तुलना करने से होता है। ज्ञान के भिन्न गुण के रूप में साधारण अर्थ में आत्मसंयम की आवश्यकता-उसके द्वारा स्वीकृत नहीं हो पाई थी । निश्चित ही उसकी शिक्षाओं के सम्बंध में यह दृष्टिकोण अरस्तू की निकोमेशियन इथिक्स नामक ग्रंथ के रचयिता के द्वारा अपनाया गया था। यह अपने ग्रंथ के दूसरे अध्याय में लिखता है कि सुकरात ने इस सिद्धांत के सम्बंध में तर्क प्रस्तुत किए कि आत्मसंयम की आवश्यकता ही नहीं है। ( केवल भाषानुवाद किया गया है ) । 6. देखिए - जेनोफोन - मेमोरेबिलिया 7. कहा जाता है कि वे भूमि पर या तम्बू में सोते थे, एक ढीला चोगा ही उनकी वेशभूषा थी, जिसे सर्दी में दोहरा कर लेते थे, आग की बचत करने के लिए कच्चा मांस खाते थे। 8. सम्पत्ति की परम्परागत धारणा का इस सम्प्रदाय ने जानबूझकर जो तिरस्कार किया, जिसके कारण आज सिनिकल शब्द का अर्थ किया जाता है - पागलपन। वस्तुतः ग्रीक यह मानते थे कि इस सम्प्रदाय का नामकरण उस व्यायामशाला के नाम पर से हुआ, जहां ऐन्टिस्थेनीज शिक्षा देते थे । मोटे रूप से यह शब्द उनकी कुत्ते, जो
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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