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और कालक्रम से यह एक आन्दोलन का रूप लेता गया। तब से स्त्रियों को पुरुषों के समतुल्य स्थापित करने के प्रयास निरन्तर हो रहे हैं। __इसी क्रम में जब हम तथागत बुद्ध की विचारसरणी का अध्ययन करते हैं तो ज्ञात होता है कि मानवसभ्यता के इतिहास में कुछ संकोच के साथ ही सही, पर बुद्ध द्वारा नारियों को प्रदत्त अधिकार एवं आदर उनके लिए किसी वरदान से कम नहीं थे। तत्कालीन स्त्रीसमाज की बहुत सारी महिलाओं ने इस अवसर का पूरा लाभ उठाया तथा संघ में प्रवेश लेकर अपने जीवन को धन्य बनाया एवं साधना-मार्ग पर आरूढ़ हो जीवनमुक्त तक की स्थिति को प्राप्त किया, जिनमें प्रजापति गौतमी, कृशागौतमी, आम्रपाली, पटाचारा, क्षेमा, विमला आदि के नाम प्रमुख हैं। इन बिन्दुओं पर पूर्ण लेख में विस्कृत चर्चा की जाएगी।
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कलचुरि काल में बौद्ध धम (त्रिपुरी के कलचुरियों
के विशेष संदर्भ में
रंजना जैन, जबलपुर
भारत के इतिहास के पूर्व मध्यकालीन प्रांतीय राजवंशों में कलचुरि वंश की अपनी अलग महत्ता है। कलचुरियों का अभ्युदय गुप्तों के पतन के उपरांत हुआ। उन्होंने छटवीं शताब्दी के मध्य से सत्रहवीं शताब्दी के मध्य तक लगभग बारह सौ वर्षों तक भारत के उत्तर एवं दक्षिण में स्थित किसी न किसी प्रदेश पर शासन किया है। प्रस्तुत शोधपत्र त्रिपुरी के कलचुरि शासकों से संबंधित है। मध्य युगीन भारत के सांस्कृतिक जीवन में त्रिपुरी का एक विशिष्ट स्थान है। प्राचीन त्रिपुरी नगरी जबलपुर के निकट वर्तमान तेवर गांव एवं इसके आस-पास के क्षेत्र में स्थित थी। इसमें पुण्य-सलिला नर्मदा के तट पर स्थित आज का भेड़ाघाट भी सम्मिलित था। तेवर गांव, जबलपुर-भोपाल राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 12 पर जबलपुर नगर के पश्चिम में 12.8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
त्रिपुरी के उत्खननकर्ता श्री एम०जी० दीक्षित के अनुसार ईसा पूर्व प्रथम