________________
चालक आपका हित करता हैं न ? भले वैसा कोई विचार आपके मनमें न हो ।
* भाषावर्गणासे मनोवर्गणाका उपकार-क्षेत्र बड़ा हैं ।
हम जिस तरह विहार करते हैं उसी तरह हमारे छोड़े हुए भाषा और मनके पुद्गल भी विहार करते हैं ।
पंद्रह योगोंके पुद्गल अल्प या अधिक देशांतर जाते हैं । कोई थोड़े दूर अटकते हैं कोई दूर तक जाते हैं ।
भगवान पवित्र वाणीका उच्चार करते हैं तब उसकी तरंगे सर्वत्र नहीं फेलती होगी ? सीमंधरस्वामी की वाणी के पुद्गल यहां नहीं पहुंचते होंगे ?
यह भी हमारा उनके द्वारा होता हित ही हैं न ?
परदेशमें पूज्यश्री के वचन की लब्धि का प्रसार ___एक युवानने थोड़े ही दिनोंमें पूरी किताब (तत्त्वज्ञान प्रवेशिका) कंठस्थ कर ली और इसके चिंतनमें ऐसा खो गया कि अमेरिकामें धन कमाने गये हुए उस आदमीने धर्म कमाया । इतना ही नहीं लेकिन अमेरिका छोड़ दिया और भारत आकर आजीवन ब्रह्मचर्य ग्रहण कर तत्त्वज्ञान आत्मसात् किया । ज्यों ज्यों तत्त्वज्ञान प्राप्त करता गया त्यों त्यों इस जीवको भी जन्मो-जनम चले वैसा तत्त्व-चिंतन का महान पाथेयं मिला, जिसका ऋण कैसे अदा हो सकता हैं ?
- सुनंदाबहन वोरा
कहे
४0omoooooooooooooooom६९