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________________ सामने हैं । कोई भूल हो तो कहना । मैं सुधार दूंगा । आप गीतार्थ हो । हरिभद्रसूरि स्वयं भी अपनी तरफ से नहीं कहते । देखो, वे स्वयं कहते हैं : 'योगक्षेमकृदयमिति विद्वत्प्रवादः ।' भगवान योगक्षेम करनेवाले हैं, ऐसा प्राज्ञपुरुष कहते हैं । योग-क्षेम नहीं करते हो और मात्र महत्त्व बढ़ाने के लिए यह विशेषण नहीं लगाया । वस्तुतः भगवान योग-क्षेम कर ही रहे हैं, इसीलिए ही भगवान 'नाथ' कहे गये हैं । बहुत सारे प्रसंगोंसे भगवान नाथ हैं, योग-क्षेम करते हैं, ऐसा नहीं लगता ? भगवान की आज्ञा थोड़ी सी छोड़ दी और आपत्ति में पड़ गये, ऐसा नहीं बनता ? कल ही एक साध्वीजी दो घड़े पानी ला रहे थे । (यद्यपि वे एक ही घड़ा लाते हैं । दूसरा घड़ा तो दूसरे का था । सिर्फ पांच कदम आगे रखने गये थे ।) घड़े फूट गये । साध्वीजी सख्त जल गये। जिनको देखना हो वे उनकी दशा देखकर आयें । इसीलिए ही मैं दो घड़े लाने के लिये मना करता हूं। . पू. कनकसूरिजीके जमाने में तो प्लास्टिक था ही नहीं । पू. कनकसूरिजी के कालधर्म के बाद (वि.सं. २०२०) पू. रामसूरिजी (डेलावाले) कच्छमें आये थे । तब हमारे पास एक प्लास्टिककी काचली देखकर पूछा : आपके समुदायमें भी प्लास्टिक आ गया ? तब हमने कहा था : 'भूलसे एक काचली आ गई हैं ।' आज तो प्लास्टिक का अमर्यादित उपयोग होने लग गया हैं । पू. कनकसूरिजी म. तो प्लास्टिकका माल लेकर कोई श्रावक आये तो थेलीमें पेक कर, लानेवाले भाई को तुरंत ही रवाना कर देते । क्या भरोसा कोई बालमुनि प्लास्टिक की चीजोंसे ललचा जाय । इन (हेमचन्द्रसागरसूरिजी) महात्माके गृपमें आज भी प्लास्टिक का उपयोग नहीं होता । अपुनर्बन्धक, मार्गानुसारीके भी योग-क्षेम करनेवाले भगवान हैं । भले वे आज अन्य धर्ममें हैं । वीतराग भगवान को पहचानते भी नहीं हैं, परंतु भगवानको वे भजते हैं। उनका योग-क्षेम भगवान करते ही रहते हैं । (कहे कलापूर्णसूरि - ४0000000000000000 ४७)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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