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________________ निष्काम करुणासागर हैं । वीतराग होने पर भी जीवों की तरफ वात्सल्यकी धारा बहा रहे हैं । * दुनिया के सन्मानसे आप अपना मूल्यांकन मत करना । स्वयंका मूल्यांकन बहुत ही कठोर बनकर आपकी तटस्थ आंखों से किजिए । दूसरों के अभिप्रायसे चलने गये तो धोखा खा जाओगे । * मूर्ति, आगम, मुनि, मंदिर, धर्मानुष्ठान बगैरह कुछ भी देखकर धर्म या धर्मनायक, भगवान के प्रति अहोभाव जगे तो धर्मका बीज पड़ गया, ऐसा माने । पूर्वभवमें इस तरह बीजाधान हुआ होगा, इसीलिए ही हमें धर्म मिला हैं । बीजाधान हुआ हो तो ही भगवान के प्रति समर्पण भाव जगता हैं, भगवानको नाथके रूपमें स्वीकारने का मन होता हैं । भगवान उनके ही नाथ बनते हैं, सबके नहीं, केस सौंपे बिना डोकटर या वकील भी केस हाथमें नहीं लेते तो भगवान कैसे लेंगे ? काम किये बिना तो सेठ भी वेतन नहीं देता तो भगवान कैसे देंगे ? पूज्य हेमचन्द्रसागरसूरिजी : यह तो सौदाबाजी न हुई ? पूज्यश्री : पानी इतनी तो शर्त रखता हैं : आप उसको पीओ। पीने के बिना पानी कैसे प्यास बुझायेगा ? आपके इस शिष्य का योग-क्षेम करते हो ? . पूज्य हेमचन्द्रसागरसूरिजी : सेवा करे तो योग-क्षेम करता हूं। क्योंकि मैं भगवान नहीं हूं। पूज्यश्री : यहां पर भी समर्पित बनो तो भगवान योग-क्षेम करते हैं । भगवान मोक्षके पुष्ट निमित्त हैं, किंतु आप मोक्षकी साधना करने के लिए तैयार ही न हो तो भगवान क्या करे ? मोक्षकी साधना करने के लिए आप तैयार हुऐ हो ? आपके (हेमचन्द्रसागरसूरिजी) और मेरे बीच कोई गुरु-शिष्यका संबंध है क्या ? फिर भी पूछने आओ तो मैं मना करूं ? * मैं घरका एक अक्षर यहां नहीं कहता हूं । पूर्वाचार्योंने कहा हुआ - अनुभव किया हुआ कह रहा हूं। ऐसी पंक्तियां मेरे [४६ Www B BW BODOGGB कहे कलापूर्णसूरि - ४)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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