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________________ संसारी नाम नूतन नाम (१) मिश्रीमलजी (उ.व. ४९) मुनिश्री कलधौतविजयजी (बादमें बड़ी दीक्षा के समय मुनिश्री कमलविजयजी) (२) अक्षयराज (उ.व. ३०) मुनिश्री कलापूर्णविजयजी (३) ज्ञानचंद (उ.व. १०) मुनिश्री कलापविजयजी (बड़ी दीक्षा के समय मुनिश्री कलाप्रभविजयजी) (४) आशकरण (उ.व. ९) मुनिश्री कल्पतरुविजयजी (५) रतनबहन (उ.व. २९) साध्वीजीश्री सुवर्णप्रभाश्रीजी मुनिश्री कलधौतविजयजी और मुनिश्री कलापूर्णविजयजी ये दो पूज्य आचार्यश्री विजयकनकसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य के रूपमें घोषित किये गये और बड़ी दीक्षा के समय पूज्य आचार्यदेवने इन दोनों मुनियों को मुनिश्री कंचनविजयजी के शिष्य बनाये ।। __दोनों बालमुनि अपने पिता-गुरु के शिष्य बने और साध्वीजी सुवर्णप्रभाश्रीजी पूज्य आचार्य भगवंत के आज्ञावर्ती साध्वीजी श्री लावण्यश्रीजी के शिष्या साध्वीजी सुनंदाश्रीजी के शिष्या बने । दीक्षा महोत्सव की पूर्णाहूति निर्विघ्नरूप से हुई और फलोदी के संघकी अति आग्रहभरी विनंति होने से वि.सं. २०१० का प्रथम चातुर्मास वहीं हुआ । चातुर्मास दौरान नूतन मुनिवरों को ज्ञानाभ्यासमें और संयम की आराधनामें डूबे हुए देखकर लोगोंने बहुत ही अनुमोदना की । और जो बालदीक्षा के विरोधी थे वे भी उनकी मुलाकात लेते । उनकी जीवन-चर्या, नित्य प्रवृत्ति और पूछे हुए प्रश्नों के जवाबसे अत्यंत प्रभावित होकर आनंद व्यक्त करने लगते । पूरे चातुर्मासमें संघने अत्यंत सुंदर ढंग से धर्माराधना का लाभ लिया और शासन की अपूर्व प्रभावना हुई । चातुर्मास दौरान मुनिश्री कलधौतविजयजी के संसारी पुत्र नथमलभाई (उ.व. १२) भी गुरुदेवों के पुनित समागम से वैराग्य वासित बने और चातुर्मास के बाद मृगशीर्ष शुक्ला ----- के शुभ दिन भव्य महोत्सपूर्वक उनकी दीक्षा हुई । उनका नाम मुनिश्री कलहंसविजयजी रखकर उनके पिता-गुरु (कलधौत वि.) के शिष्यके रूपमें घोषित किये गये । (३६० 000000000 sowwws कहे कलापूर्णसूरि - ४)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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