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________________ कार्यों में मामा को सहयोग देता । पूजा, प्रतिक्रमण आदि धार्मिक क्रियाकांड उनके साथ ही करता । इस तरह ढाई साल तक वात्सल्यवंत मामा द्वारा अक्षय को धार्मिक क्रियाकांड तथा व्यापार क्षेत्रमें तालीम मिलती रही । सगाई और लग्न : वि.सं. १९९६में अक्षय फिरसे माता-पिता की सेवामें फलोदी आया तब माता-पिताने फलोदी गांव के एक धर्मिष्ठ और सुखी कुटुंबवाले मिश्रीमलजी बैद की सुपुत्री रतनबहन के साथ अक्षय की सगाई की, तब उसकी उम्र १६ साल की थी। माघ महिनेमें (माघ सु. ५) अक्षय के विवाह हुए और वैशाखमें मामा माणेकचंदभाई (हैद्राबादमें) गुजर गये । अक्षयमें धार्मिक - व्यावहारिक संस्कारों के सिंचन से स्वयं का जीवन-कार्य समाप्त हुआ जानकर मानो उन्होंने अपनी जीवन-लीला समेट दी । मामा अक्षय को बहुत ही तैयार हुआ देखना चाहते थे । काश ! अगर वे ज्यादा जीये होते ! तो वे देख सकते कि यह अक्षय लग्न की दिवारोंमें बंद रहनेवाला कैदी नहीं हैं लेकिन अध्यात्म-गगनमें उडनेवाला गरुड हैं। लेकिन विधि विचित्र हैं। उसका किया हुआ स्वीकारना ही पड़ता हैं । शादी के बंधन से बंध गये होने पर भी अक्षयराजने कभी धार्मिक भावना नहीं छोड़ी। अरे, लग्न के दिनोंमें भी उसने कभी रात्रिभोजन नहीं किया । मारवाड़ीओं की शादी मतलब मौज-मजा के फव्वारे ! इसमें धार्मिक नियमों को टिका रखना सत्त्वहीन लोगों का काम नहीं हैं। अक्षय का पठन-रस : अक्षय को पढने का अति रस था । उसे पूर्ण करने के लिए धार्मिक साहित्य को पढना कभी चूकता नहीं था । _ 'जिनवाणी' (दिगंबरों की ओर से प्रकाशित होता हिन्दी सामयिक, जिसमें धामिक कथा, चिंतन आदि आता था ।) तथा काशीनाथ शास्त्री की धार्मिक कथाएं तथा दूसरे भक्तिप्रधान पुस्तकें इत्यादि साहित्य, उसके वांचन का विषय था । हलके साहित्य, तुच्छ नवलकथाएं, डीटेक्टीव उपन्यास इत्यादि वह पढता तो नहीं (३४४ 00000000000000000000 कहे कलापूर्णसूरि - ४)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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