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अक्षय के फूटते विचार - झरण को मोड़ीबाई की इन कथाओं द्वारा वेग मिलता ।
था ।
अक्षय का मुख्य आनंद :
अक्षय का जीवन बचपनसे ही सादा, संयमी और प्रभु - प्रेमी
न कोई खान-पान की लालसा...।
न कुछ पहनने-ओढने का पागलपन...।
न किसी खेल-कुद की आसक्ति...।
न बहुत बोलने का बावलापन...।
अक्षय बहुत ही कम आवश्यक शब्द - ही बोलता । तो क्या अक्षय का जीवन नीरस था ? नहीं... उसका जीवन थोड़ा भी नीरस नहीं था, लेकिन रसपूर्ण था । किंतु उसे रस था
परमात्मा पर ।
परमात्मा के रस को छोड़कर शेष सर्व रस उसके मन फीके थे । बचपन से ही उसकी चेतना ऊर्ध्वगामिनी थी । ऊंचे जाने, परमात्मा को प्राप्त करने के लिए तड़प रही थी । जिसे शिखर पर आरोहण करना हो वह घाटी के अंधकारमें क्यों पड़ा रहेगा ? प्रकाश से झगझगाते प्रदेश की ओर जाने की इच्छावाला अंधेरेमें क्यों लोटेगा ? परमात्मा की अमृत - सृष्टि की ओर जाने का इच्छुक, विनाशी और इन विषभरे पदार्थोंमें रस कैसे रखेगा ? बचपन से ही अक्षय को परमात्मा की लगनी थी । अक्षय फिर हैद्राबादमें...
वत्सल मामा द्वारा तालीम :
इस तरफ मामा माणेकचंद अक्षय को भूले नहीं थे । अक्षय हैद्राबाद छोड़कर भले फलोदी चला गया, परंतु मामा के मन से हटा नहीं था । अक्षय का स्वभाव ही इतना शांत, सरल और नम्र था कि जिसके हृदयमें एक बार बस जाता वह कभी उसे भूलता नहीं । दूसरे भी नहीं भूलते तो मामा कैसे भूलेंगे ?
तीन वर्ष के बाद फिर १३ वर्ष के अक्षय को हैद्राबाद बुला लिया ।
वहाँ मामा के साथ अक्षय दुकानमें बैठता । दूसरे भी हर
कहे कलापूर्णसूरि ४wwwwwww
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