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________________ श्रवण होने के बाद भी श्रद्धा न हो तो श्रवण व्यर्थ जाता हैं । श्रध्धा होने के बाद उस मुताबिक जीवन न बने वहाँ तक उतनी खामी कही जाती हैं । आज तीन पदस्थ तथा चौदह आत्माएं दीक्षित बनी हैं । आज की घड़ी अतिधन्य हैं । यह उत्तमोत्तम जो पद मिले हैं, उसे कैसे शोभास्पद बनायें ? वह हमें गुरु भगवंत से जानना हैं । पंन्यास-गणि इत्यादि पद मिलने के बाद भार बढ जाता हैं । आप भी प्रधान बनते हो तब भार बढता हैं न ? पंन्यास-गणि पद की इतनी महत्ता हैं कि अगर इस प्रकार जीवन बनायें तो विपुल कर्म की निर्जरा होती हैं । गुणों की वृद्धि द्वारा ही कर्म की निर्जरा होगी । आप सब गुण प्राप्तिमें तत्पर बनो । आपके गुणों द्वारा संघमें उल्लास बढे, धन्य धन्य जिनशासन... ऐसे उद्गार निकल पड़े, ऐसा आपका जीवन होना चाहिए । नूतन दीक्षितों को कहना हैं : जो प्रतिज्ञा स्वयं भगवानने ली वह आपको मिली हैं, इसका महत्त्व कम न समझें । यह प्रतिज्ञा लेकर जीवनभर समतामें रहना हैं । जीवनभर पापक्रिया से दूर रहना हैं । थोड़ा भी पर-पीड़न न हो उसका ख्याल रखें । जिन-भक्ति, गुरु-भक्ति, शास्त्र-स्वाध्याय इत्यादिमें मग्न बनकर जीवन धन्य बनाना हैं । नूतन पंन्यासश्री मुक्तिचंद्रविजयजी : परम करुणासागर इस युग के प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ प्रभु को अनंत वंदन । परम श्रद्धेय, मेरी जीवन नैया के सुकानी, परम तारक, पूज्य गुरुदेव आचार्यश्री विजयकलापूर्णसूरीश्वरजी म.सा. तथा पू. गुरुदेव आचार्यश्री विजयकलाप्रभसूरीश्वरजी म.सा. को वंदन... परम करुणासिंधु वर्तमान शासन नायक भगवान श्री महावीरदेवने जिस शासन की स्थापना की, वह २५०० से अधिक वर्ष बीतने पर भी आज जयवंत हैं, उसमें प्रभु की पाट-परंपरा के वाहक पू. आचार्य भगवंतों का महान योग-दान हैं । प्रभु श्री महावीर देवकी ७७वी पाट पर बिराजमान पूज्य ३२८ ganasanapooooooooooo
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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