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को ही मिलता हैं । पूज्यश्री की निश्रामें पूरे चातुर्मासमें सबने आनंद की अनुभूति की हैं ।
कोई संयोग ही ऐसा : पूज्यश्री पधारे और चारों तरफ से सर्व समुदाय के महात्मा आकर खींचाने लगे ।
सभी दूधमें शक्कर की तरह मिल गये ।
ऐसा दृश्य देखने का सौभाग्य इस धरती को मिला हैं । आपने साधर्मिक भक्ति जोरदार की ही हैं ।
अब कार्य रहा : जीवदया का ।
मनुष्य को भी पानी मिले या नहीं ? ऐसा समय आ खड़ा हैं, वहाँ पशुओं की हालत क्या होगी ? उसकी कल्पना कर सकते हो । पिंजरापोलोंमें निरंतर पशु आते रहते हैं, लेकिन पानी - घासचारा बहुत ही दुर्लभ और महंगा बना हैं, वह आप जानते ही हैं ।
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छः जीवनिकाय की रक्षा के लिए ही हम दीक्षा लेते हैं । कसाई के सामने संघर्ष के लिए तैयार रहना, मोत को भी मीठी मानना, ऐसा खमीर जैन ही बता सकते हैं ।
अब आप ऐसा आयोजन करो कि जिससे अकाल की छाया दूर की जा सके ।
पूज्य कलापूर्णसूरिजी आज शिरमोर आचार्य भगवंत हैं। सबके आदर और श्रद्धा के पात्र बने हैं । आपको ऐसे गुरु मिले हैं उसका गौरव होना चाहिए ।
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आप सब जीवदया के लिए पीछे नहीं पड़ेंगे, पूज्यश्री की बात प्रेम से स्वीकार लेंगे, ऐसी श्रद्धा हैं ।
नूतन पदस्थों तथा दीक्षितों को पूज्यश्री द्वारा हितशिक्षा
चत्तारि परमंगाणि, दुल्लहाणीह जंतुणो ।
माणुसतं सुई सद्धा, संजमम्मि अ वीरिअं ।
उत्तराध्ययन ४/१
भगवान महावीर चार वस्तु अत्यंत दुर्लभ बताते हैं : मानवजन्म, गुरु के पास धर्मश्रवण, उस पर श्रद्धा (रुचि) और
उसका आचरण ।
कहे कलापूर्णसूरि-४
कळ
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