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________________ आचार्यश्री के पहले हुए ७६ महात्माओं का हम सब पर अनन्य उपकार हैं । शास्त्रकारोंने तीर्थंकरों की अनुपस्थितिमें आचार्यश्री को ही तीर्थंकर तुल्य कहे हैं : 'तित्थयरसमो सूरी' बात भी सच हैं । एक अवसर्पिणी या उत्सर्पिणी कालमें तीर्थंकर तो मात्र २४ ही होते हैं, लेकिन शेषकालमें शासनकी बागडोर चलानेवाले कौन ? आचार्य भगवंत । आचार्य भगवंत राजा कहे गये हैं । आचार्य गच्छ का किस तरह संचालन करते हैं, आश्रितों का योगक्षेम किस तरह करते हैं ? उस पर गच्छाचार पयन्ना आदि आगम ग्रंथमें विशद मार्गदर्शन दिया गया हैं । आचार्य अकेले तो संपूर्ण गच्छ को सब तरह से संभाल नहीं सकते । इसलिए उपाध्याय, गणावच्छेदक, प्रवर्तक, पंन्यास, गणि इत्यादि पदवीधर महात्मा गच्छ के संचालनमें आचार्यश्री को सहायक बनते हैं । बहुत को पता नहीं होगा कि यह गणि और पंन्यास पदवी क्या हैं ? दोनोंमें क्या अंतर ? मूलमें हमारा जैनशासन द्वादशांगी के आधार पर चल रहा हैं । द्वादशांगी को बचाने के लिए ही बारह वर्ष के दो-दो अकाल के बाद जैन श्रमण-संमेलनों का आयोजन हुआ था । द्वादशांगी के बचाव के लिए ही मथुरा और वलभीपुरमें वाचनाओं का आयोजन हुआ था । द्वादशांगी के बचाव के लिए ही देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमणने संपूर्ण आगम ग्रंथों को पुस्तकारूढ किये थे । इसके पहले सभी आगम मुखपाठ से चलते । भगवान महावीर के निर्वाण के बाद देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमणने देखा कि अब ऐसी प्रज्ञा नहीं हैं कि सुनकर मुनि याद रख सके । समय का तकाजा हैं कि आगमों को पुस्तकों पर लिखे जायें । यदि इस तरह नहीं किया गया तो भगवान की वाणी की यह अमूल्य संपत्ति नष्ट-भ्रष्ट हो जायेगी । अपनी विशिष्ट प्रतिभा से देवर्द्धिगणिने आगमों को पुस्तकारूढ बनाकर महान युगप्रवर्तक कार्य किया । जिसकी नोट आज भी कल्पसूत्र के अंतमें हैं । आगमों के रहस्य बराबर समझाने के लिए ही आगमपुरुष श्री कहे कलापूर्णसूरि ४wwwwww १०० ३२९
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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