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________________ दीक्षा पदवी प्रसंग, वि.सं. २०५७, पालिताना १-१२-२०००, शुक्रवार ५ मृगशीर्ष शुक्ला (पू. गणिश्री मुक्तिचंद्रविजयजी को पंन्यास पद, पू. तीर्थभद्र वि. तथा पू. विमलप्रभ वि. को गणि-पद तथा बाबुभाई, हीरेन, पृथ्वीराज, चिराग, मणिबहन, कंचन, चारुमति, शान्ता, विलास, चन्द्रिका, लता, शान्ता, मंजुला और भार ये चार पुरुष और दस बहनों का दीक्षा प्रसंग । कल्पनाबहन की दीक्षा मृग. शुक्ला ११ को हुई ।) पू. आ. श्री विजय कलापूर्णसूरिजी : आज चतुर्विध संघ आनंद-उल्लासमय हैं । पंन्यास, गणिपद तथा चौदह प्रव्रज्या के मंगल प्रसंग हैं । जिनशासन की बलिहारी हैं : ऐसे प्रसंग देखने मिलते हैं । दूसरे कहाँ ऐसा देखने मिलेगा ? प्रेमभाव भी कैसा ? हर प्रसंगमें प्रत्येक आचार्य भगवंतभी उपस्थित हो ही जाते हैं । यहाँ भी आप अनेक समुदाय के अनेक आचार्य भगवंतों को देख सकते हो । I ऐसे बड़े प्रसंग पर ऐसे भयानक अकाल के प्रसंगमें जीवदया की टीप होनी ही चाहिए । हमारे मुहूर्त को थोड़ा ही समय हैं । उतने समय तक आप जीवदया का कार्य कर लो, ऐसी मेरी इच्छा हैं । कहे कलापूर्णसूरि ४ ३२५
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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