SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 336
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तर : यहाँ स्पष्ट लिखा हैं : मुनि पूजा के लिए उपदेश दे सकते हैं, अनुमोदना भी कर सकते हैं । समवसरणमें देव (सूर्याभ जैसे) नाटक करते हो तो साधु उठकर चले नहीं जा सकते । यह भी एक प्रभु-भक्ति हैं। केवली भगवान भी भगवान की देशना चालु हो तब वहाँ बैठे रहते हैं; कृतकृत्य होने पर भी । यह व्यवहार हैं, उनका विनय हैं, केवली भी विनय नहीं छोड़ते तो हम कैसे छोड़ सकते हैं ? लुणावा (वि.सं. २०३२) में प्रभु का वरघोड़ा था । पधारने की विनंति होने पर किसी साधु की राह देखे बिना पू.पं. भद्रंकर वि.म. वहा पधार गये थे । ऐसा मैंने अपनी आखों से देखा हैं । भगवान का यह विनय हैं ।। * साधु पूजा के लिए उपदेश दे सकते हैं, करा सकते हैं । यहाँ स्पष्ट लिखा हैं । साधु इस तरह उपदेश देते हैं : 'जिनपूजा करनी चाहिए । इससे श्रेष्ठ, पैसों का कोई अन्य स्थान नहीं हैं।' सामायिक इत्यादि स्वस्थानमें श्रेष्ठ हैं, लेकिन भगवान का विनय गृहस्थों तो पूजा द्वारा ही कर सकते हैं । फिर धनकी मूर्छा भी पूजा द्वारा टूट सकती हैं । जिन्हें धन की मूर्छा छोड़नी नहीं हैं वे सामायिक पौषध की बात आगे करके बैठे रहते हैं । 'न पैसो, न टक्को, ढुंढियो धरम पक्को ।' ऐसे लोगों को ढुंढक मत अच्छा लगता हैं, उसमें कोई आश्चर्य नहीं हैं । एक पैसे का भी खर्च नहीं हैं न ! पूजा के प्रभाव से ही श्रावक के जीवनमें भक्ति बढ़ती हैं । भक्ति बढ़ते विरति उदयमें आती हैं । सांपवाले खड्डेमें पड़े हुए बालक को बचानेवाली माता (बालक को भले दर्द हो या घाव लगे) दोष-पात्र नहीं हैं, उसी तरह गृहस्थों को द्रव्य-पूजा के लिए उपदेश देनेवाले साधु दोष-पात्र नहीं हैं । महादोषमें से बचाने के लिए अल्पदोष कभी जरूरी बन जाता हैं । प्राथमिक देशविरति के परिणाममें जिनपूजा और जिन-सत्कार करने की भावना पैदा होती ही हैं । यह सत् आरंभ होने से उपादेय हैं। असत् आरंभ से बचानेवाला हैं। (३०६ 000000000mmasoom कहे कलापूर्णसूरि - ४)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy