SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 335
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यहाँ कौन अलग हैं ? हम सब एक डाल के पंखी हैं । एक ही सूरज की किरण और एक ही फूल की पंखुडी हैं । एक ही हांडी के चावल हैं । दूसरे को छोड़कर केवल हमारा भला कर नहीं सकते । . भगवान भगवान कैसे बने ? सर्व जीवोंमें स्व का दर्शन करने से ही भगवान भगवान बने हैं । इस संदर्भमें 'सव्वलोअभाविअप्पभाव' विशेषण कितना चोटदार हैं ? भगवानने सर्व जीवोंमें आत्मभाव स्थापित किया हैं । * भगवान भले सात राजलोक दूर हो, परंतु भक्त के मन तो भगवान यहीं हैं। क्योंकि दूर रहे हुए भगवान को खींचनेवाली शक्ति उसके पास हैं । पतंग भले आकाशमें हो, लेकिन धागा पासमें हो तो पतंग कहा जायेगी ? भगवान भले दूर हो, लेकिन भक्ति पासमें हो तो भगवान कहाँ जायेंगे ? . हृदय को सदा पूछते रहो : भक्ति की रस्सी पासमें हैं न ? भक्ति की रस्सी गई तो भगवान गये । भगवान जाते ही तुरंत मोह चढ बैठेगा । मोह, भगवान जाये उसी की राह ही देख रहा हैं । गुफामें से सिंह चला जाये फिर वाघ, भेड़िये आते देर कितनी ? हृदयमें से भगवान जाने पर पाप आते देर कितनी ? * काउस्सग्ग हमें फल देता हैं, लेकिन इसके पहले इतनी शर्त हैं : आपके श्रद्धा, मेधा, धृति, धारणा और अनुप्रेक्षा ये पांचों गुण बढते होने चाहिए । __ इस 'अरिहंत चेइयाणं' सूत्र से चैत्यवंदन करनेवाला वंदनाकी भूमिका तैयार करता हैं और अवश्य (निर्वृतिमेति नियोगतः) मोक्षमें जाता हैं । * 'अरिहंत चेइआणं' सूत्र से जगतमें रहे हए सर्व चैत्यों को (प्रतिमाओं) को वंदन पूजन इत्यादि का लाभ मिल जाता हैं । प्रश्न : जैन मुनि तो सर्वविरतिमें रहे हुए हैं । वे प्रतिमा का पूजन इत्यादि का उपदेश कैसे दे सकते हैं ? या कैसे अनुमोदना कर सकते हैं ? (कहे कलापूर्णसूरि - ४0wwwwwwwwwwwwwwwww ३०५)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy