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________________ पू.आ.श्री विजयप्रेमसूरिजी को मैंने देखे नहीं हैं, किंतु सुने जरुर हैं । अनंतर या परंपर इन पूज्यश्री का भी हम पर उपकार हमारे पू. गुरुदेव (पू.आ.श्री विजय कलापूर्णसूरिजी महाराज) को राजनांद गांव (M.P.) में पू. रूपविजयजी म. के पास आते जैन प्रवचन पढकर वैराग्य हुआ था । जैन प्रवचनों के देशक पू. रामचंद्रसूरिजी को तैयार करनेवाले पू. प्रेमसूरिजी ही थे । इस तरह पूज्यश्री का हम पर भी उपकार हैं । आपके पास शायद आपकी सात पीढी की यादी भी नहीं होगी । हमारे पास भगवान महावीरस्वामी से लेकर अब तक की संपूर्ण परंपरा हैं । पूज्यश्री सुधर्मास्वामी की ७६वीं पाट पर आये हुए हैं । पिंडवाड़ा के पास नांदिया की पुण्यधरा पर वि.सं. १९४०, फा.सु. १५ के दिन पूज्यश्री का जन्म हुआ था । पूर्णिमा के दिन बहुत महापुरुषोंने जन्म लिया हैं । - कलिकाल-सर्वज्ञ श्री हेमचंद्रसूरिजी का का.शु. १५, श्रीमद् राजचंद्र और नानक का भी का.शु. १५, बुद्ध का वै.सु. १५ के दिन हुआ था । अमावस्या के दिन सूर्य और चंद्र साथमें होते हैं । 'अमा' याने 'साथमें', 'वस्या' यानि 'वास' । सूर्य-चंद्र का साथ वास हो वह 'अमावस्या' कही जाती हैं । पूर्णिमा के दिन इससे विपरीत स्थिति होती हैं । यानि की सूर्य और चंद्र आमने-सामने होते हैं । पूर्णिमा के दिन जन्मे हुए ज्यादा करके भीमकांत गुणयुक्त नेतृत्व वाले होते हैं । पूज्यश्रीमें ये दोनों गुण थे । इस लिए ही पूज्यश्री २५० जितने श्रमणवृंद का सफल नेतृत्व कर सके थे । जहाँ जहाँ विचरण किया वहाँ वहाँ पूज्यश्रीने चारित्र की प्रभावना की हैं । गुजरात, राजस्थान, कर्णाटक इत्यादि प्रदेशों की अनेक हस्तीओं को उन्होंने स्वयं की तरफ आकर्षित की । इस कालमें यह कोई छोटी सिद्धि नहीं हैं । इनकी खींचने की शक्ति, इनका वात्सल्य, इनकी करुणा को दिखानेवाला एक प्रसंग कहता हूं । कहे कलापूर्णसूरि - ४66000000000000000000 २८५)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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