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के समय ही भगवान का स्मरण करते हैं न ? भगवान सर्वस्व हैं, ऐसा कभी लगा ? सर्वस्व लगे तो भगवान के बिना एक क्षण भी रह सकते क्या ?
(३०) मुत्ताणं मोअगाणं ।।
भगवान कर्मों के बंधन से मुक्त बने हुए हैं। दूसरे को भी मुक्त बनानेवाले हैं।
कर्म का नित्य बंध करनेवाले हमें मुक्ति अच्छी लगती हैं या नहीं ? यही सवाल हैं । छुटकारा (मुक्ति) अच्छा लगता हो तो कर्म का बंधन कैसे अच्छा लगता ? जिस-जिस प्रवृत्ति से कर्म का बंधन होता हो वह-वह प्रवृत्ति क्यों न रुके ?
सार मात्र इतना ही हैं : जिस प्रवृत्ति से कर्मबंधन हो वह नहीं करनी ।
माषतुष मुनि को मात्र इतना ही सीखाया गया था : रोषतोष न करें । कोई प्रशंसा करे तो खुश न हों । निंदा करे तो नाराज न हों । इतने ज्ञान को भावित बनाया तो केवलज्ञान पा लिया ।
__ थोड़ा ज्ञान हो वह चलता हैं, लेकिन वह भावित होना चाहिए। मैं इसलिए ही ज्यादा ज्ञान पर जोर नहीं देता, इसे भावित बनाने पर ज्यादा जोर देता हूं ।
एक भगवान को पकड़ लो । वे भगवान आपको जीता देंगे, तार देंगे, जगा देंगे और छुड़ा देंगे ।
जो कोई भी भगवान की शरणमें जाता हैं, उसके लिए ऐसा करने के लिए भगवान बंधे हुए हैं । क्योंकि भगवान 'स्वतुल्यपदवीप्रदः' हैं ।
(कहे कलापूर्णसूरि - ४000000masooooo0000 २७७)