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________________ TODANA SAMANAasugamINITIOUSERIA मंदिर के शिखर पर पूज्यश्री ८-११-२०००, बुधवार कार्तिक शुक्ला -- १२ * भगवान की परम करुणा से ही इतनी धर्म सामग्री मिली हैं । भगवान की वाणी सुनते जो आनंद आता हैं, भगवान के प्रति बहुमान पैदा होता हैं तो आगे-आगे की भूमिका स्वाभाविक रूप से मिलती जाती हैं । व्यवहार से देखें तो हम आधे रास्ते पर आ गये हैं। भगवान को जिस क्षण आप अलग रखते हो उसी समय आपका मुक्तिमार्ग तरफ का प्रयाण रुक जाता हैं। भगवान क्या नहीं देते? साधना, सद्गति, बोधि सब कुछ देते हैं। अभय, चक्षु, बोधि इत्यादि सब कुछ देनेवाले भगवान हैं। एक-एक विशेषण द्वारा अन्य अन्य दार्शनिकों के मतों का यहाँ (नमुत्थुणंमें) खंडन हुआ हैं । पू. हरिभद्रसूरिजीने यह सब दार्शनिक भाषामें लिखा हैं । हमारे पास दिन कम हैं । कहना ज्यादा हैं । अतः दार्शनिक भाषा गौण करके आगे बढ़ते हैं । स्वरूप और परोपकार ये दोनों भगवान की संपदा हैं । स्वरूप उत्कृष्ट न हो तो उत्कृष्ट परोपकार कैसे हो सकता हैं ? जिसे छोटा ही कुटुंब चलाना हो तो छोटी दुकान, छोटा धंधा चलता हैं, किंतु बड़े कुटुंबवाले को तो बड़ा धंधा करना पड़ता हैं । भगवान समस्त (कहे कलापूर्णसूरि -- ४ 65656655605555 6 २७३)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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