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________________ पू. आ. श्री भद्रगुप्तसूरिजी म. ७-११-२०००, मंगलवार कार्तिक शुक्ला ११ स्थल : वावपथक धर्मशाला पू. भद्रगुप्तसूरिजी की प्रथम स्वर्गतिथि - पू. आ. श्री विजय जगवल्लभसूरिजी : मेहसाणा के मूलचंदभाई को किशोर अवस्थामें अरमान थे : अभिनेता बनने के । पू. प्रेमसूरिजी म. की इन पर नजर पड़ी और बन गये, जैन मुनि । अभिनेता भी वेष-परिवर्तन करता हैं । मूलचंदभाईने भी साधु बनकर वेष- परिवर्तन किया ही हैं न ? मूलचंदभाई पू. भानुविजयजी के शिष्य मुनिश्री भद्रगुप्तविजयजी के रूपमें प्रसिद्ध हुए । 'महापंथनो यात्रिक' नामक पुस्तक से शुरु हुई इनकी सर्जन यात्रा मृत्यु तक चलती रही । अंतिम भयंकर बिमारी के बीच भी समाधिपूर्ण चित्त से वे साहित्यसर्जन करते ही रहे । यह इनके जीवन की महत्त्वपूर्ण सिद्धि थी । पू. आ. श्री हेमचंद्रसागरसूरिजी : हमारे इन स्व. पू. आचार्य श्री के साथ गाढ संबंध थे । मैं कहे कलापूर्णसूरि ४ wwwक २६३
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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