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________________ अतुल अनादि अनंत हरे, व्यापक दिशि-दिशि भय अंत हरे, जगदीश जिनेन्द्र जयवंत हरे, भव-भयहारी भगवंत हरे. मैं समझाने के लिए नहीं, याद दिलाने के लिए आया हूं। अपने परिवार में आया हूं । अपने तीर्थ में आया हूं। आमंत्रण हो तो पराये समुदाय में भी मैं जाता, लेकिन यह तो हमारा ही परिवार है। यहां दिव्य दृश्य देखने मिला यह मेरा परम सौभाग्य है । सनातन धर्म यहां मूर्तिमंत प्रगट हुआ है । सनातन मतलब जो प्राचीन से भी प्राचीन है जो शुरु नहीं होता, जो कभी खतम नहीं होता । जो पैदा होता है, वह जरुर नष्ट होता है । इसलिए ही भगवान के नाम हमने अनामी अनंत इत्यादि रखे है । भगवान कभी समाप्त नहीं होते । जो १४०० साल पूर्व पैदा हुए, उनकी उम्र है । संप्रदाय पैदा होते है, धर्म नहीं । ई.स. २००० (मिलेनियम) से हमारा क्या लेना देना ? श्रावकों को क्या २००० से मतलब ? ___भगवान प्रेम रूप है । प्रेम के अलावा भगवान का दूसरा कोई स्वरूप नहीं है। 'खुदा से डरो' इस्लाम कहता है । हम कहते है : भगवान से प्यार करो । कभी हम नहीं कहते : अरिहंतों से डरो । जिसकी उपस्थिति भय का नाश करती है, वह तीर्थंकर है । वे तो अभयदाता है । यहां डरोगे तो निर्भय कहां बनोगे ? भय और भक्ति एक साथ नहीं रह सकते । जो स्वयं ही खुदा हुआ है, उससे क्या डरना ? ख्रिस्ती - इस्लाम खुदा से डरने का कहते है, लेकिन हिन्दु संस्कृति ऐसा नहीं कहती । अर्हतों की करुणा की लीला समझ में नहीं आती, इसलिए वह अगम्य है । संसार के सभी प्राणी के प्रति सामान्यरूप से बहता है, वह प्रेम है । इसु को २००० वर्ष भी हुए नहीं है, एक महीना और [२५४ Wooooooooooooooooooo कहे कलापूर्णसूरि - ४)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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