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________________ हो गई । जैनों के पास बुद्धि की शक्ति है । शीखों के पास बल है । शीख अलग होने से बल अलग हो गया । फिर हिन्दु के रूप में कौन रहेगा ? सिर्फ मछुआरे ही बचेंगे । * यद्यपि गांधी का मैं भयंकर विरोधी हूं । जिन्होंने किसानों को मुर्गी पालन के लिए, मद्रासवासीओं को मछलियां खाने की सलाह दी थी, रुग्ण बछड़ों को बन्दूक से मरवाया था । फिर भी विदेशीओं के समक्ष मेरा सवाल है : तुमने गांधी, इन्दिरा, J.P., बाबा आम्टे आदि को क्यों नोबल नहीं दिया ? मधर टेरेसा को क्यों दिया ? आखिर वह तुम्हारी थी इसलिए ? किसी विदेशी को तुम पोप बना सकते हो क्या ? केरल के लोग अगर काले है तो कश्मीर के गोरे लोगों को तो पोप बनाओ । ये वेटीकन के लोग है । अगर आप अलग हुए तो सर्व प्रथम आप को ही वे तोड़ना शुरु करेंगे । * जाट गुज्जर भी अपने को हिन्दु नहीं कहते, जाट इत्यादि कहते है । यह हमारा दुर्भाग्य है । मैं जैन- जैनेतरों की एकता के लिए प्राण तज देने के लिए तैयार हूं । और तो क्या कर सकता हूं ? ( नीचे मंडप सभामें ) ( आचार्य धर्मेन्द्रजी का परिचय ) चंद्रकान्तभाई : धर्मेन्द्रभाईने १११ स्थानों पर बलिदान बंध कराया हैं । ६० वर्ष तक उनके पिताने (रामचंद्रवीर) अन्न-नमक नहीं खाया । ८ लाख लोगों को हिंसासे छुड़ाये हैं । हिन्दुत्व के सामने चुनौती आये उसके सामने सजग हैं । उत्तमभाई : आचार्य धर्मेन्द्रजी जयपुर पंचखंड के अधिपति हैं । समर्थ स्वामी रामदास (शिवाजी के गुरु) के वे वंशज हैं । स्वामी रामदास उनकी ८-१० पीढी पर आते हैं। उनकी वंशपरंपरा गौरववंती हैं । छोटी उम्र में गोहत्या बंध न हो वहाँ तक अन्न-नमक त्याग किया वह त्याग आज भी चालु हैं । ११०० मंदिरोंमें उपवास करके बलिदान बंध कराये हैं । उनके पिताजीने दिल्लीमें १६६ दिन के उपवास किये थे । शारीरिक स्थिति बिगड़ जाने के कारण भरसभामें ८ वर्ष की वयमें उन्होंने प्रथम प्रवचन ( कहे कलापूर्णसूरि ४ कळकळ २५१
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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