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________________ एकात्मा से ही यह भेदभाव दूर हो सकता है । हम तो चाहते है : विश्व हिन्दु संमेलन में जैन साधु भी उपस्थित हों । हमने बौद्धों में 'बुद्धं सरणं पवज्जामि ।' का नारा लगाया था । आप जहां बुलायेंगे वहां पर शंकराचार्यों के साथ हम भी आ जायेंगे । पू. हेमचन्द्रसागरसूरिजी : तीन दिन का संमेलन बनाने की जरुरत है । जहाँ पर आप, ऋतंभरा, मुरारी बापु आदि सब पधारें । __ आ. धर्मेन्द्रजी : १७५ में से कम से कम १०० हिन्दु संत पधारेंगे, आप जहां बुलायेंगे । मार्गदर्शक मंडल में सभी हिन्दु इक्कट्ठे हो सकते है। एक भी ऐसा तीर्थ नहीं है, जहां हिन्दु जैन तीर्थ का मिश्रण न हो । कुंभ मेले जैसे प्रसंग में ऐसी बात की जा सकती है। वहां जैन संत न पहुंचे तो प्रतिनिधि भेजें । अयोध्या में दिगंबराचार्य देशभूषण आदिनाथ भगवान की बड़ी प्रतिमा की प्रतिष्ठा करा रहे थे । उस प्रतिमा को ले जाने के लिए गलीओं में सब हिंदुओंने साथ दिया था । केसरीयाजी बड़ा तीर्थ है । ब्राह्मणों ने सिद्ध किया : यह हम सब को जोड़ता है ।। जहां विसंगतियां हो वहां तोप के मुंह पर बैठने के लिए मैं तैयार हूं। प्राणलालजी : अभी शंकराचार्यजी ने बद्रिनाथ में हमारे जैन मंदिर में प्रतिष्ठा को रोकने के लिए कितने रोड़े डाले ? धर्मेन्द्रजी : शंकराचार्यजी कौन है ? आज कई नकली शंकराचार्य हो गये है। गली-गली में दो - दो शंकराचार्य घूम रहे है । कोई भी शंकराचार्य के ठेकेदार बन सकता है ।। - इसका अर्थ यह नहीं कि हम परिवार से अलग हो जायें। यह हमारी पारिवारिक समस्या है। वह आपस में बैठकर सुलझानी होगी । हमारे हिन्दुओं में सभी एक मत नहीं है। आप के जैनोंमें भी परस्पर संमति कहां है ? ___ एक करोड़ जैन अगर अलग हो गये तो बौद्धिक धारा अलग (२५०00omwwmomomonommmmmm कहे कलापूर्णसूरि - ४)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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