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पू. पंन्यासजी म. को व्यथा थी : श्री संघमें मैत्री आदि चार भाव तथा प्रभुका अनुग्रह-इस की कमी हैं । इसलिए ही जितना होना चाहिए उतना अभ्युदय नहीं हो रहा हैं ।
भक्ति मार्ग के बिना भगवान को प्राप्त नहीं कर सकते हैं । भगवान के बिना कभी सफलता नहीं मिलेगी, यह नक्की मानें।
(२३) धम्मसारहीणं ।
भगवान धर्म के सारथि हैं। भगवान धर्म का (स्व-पर की अपेक्षा से) प्रवर्तन, पालन और दमन करते हैं इसलिए वे सारथि हैं।
सारथि घोड़ा चलाता हैं, पालन करता हैं, उसका दमन भी करता हैं, उसी प्रकार भगवान धर्म को चलाते हैं, पालन करते हैं और काबूमें रखते हैं ।
__ यहाँ धर्म से चारित्रधर्म लेना हैं । चारित्रधर्म दर्शन और ज्ञान हो वहीं होता हैं । इसके बिना चारित्र ही नहीं कहा जाता ।
पहले के युद्धोंमें हाथी-घोड़ा का उपयोग होता था । इसमें भी जातिवान् हाथी-घोड़े तो ऐसे होते कि चाहे जैसे कष्टमें मालिक को मरने नहीं देते । चेतक घोड़ेने छलांग लगाकर भी महाराणा प्रताप को बचा लिया था । प्रताप को बचाने के लिये अपने प्राण धर दिये । यह जातिमत्ता हैं ।
भगवान धर्म को इस तरह चलाते हैं, पालन करते हैं और वशीभूत करते हैं ।
भगवान स्व को ही नहीं, अन्य चारित्रधर्मी आत्माओं को भी संयम धर्ममें प्रवृत्ति कराते हैं ।
___ भगवान का यह सारथित्व अभी भी चालू हैं । भगवान भले मोक्षमें गये हो, फिर भी तीर्थ रहे वहाँ तक भगवान की शक्ति कार्य करती ही हैं । मैं भगवान को बुलाऊं तब आ जाते हैं। इच्छु तब भगवान की शक्ति का अनुभव करता हूं। आप नहीं कर सकते ? एक करे वह सभी कर सकते हैं । ___ आप दुःख दूर करना चाहते हो, सुख प्राप्त करना चाहते हो और निर्भय बनना चाहते हो तो इतना करेंगे ?
देखो, मैं मेरी तरफ से नहीं कह रहा हूं, अजित-शान्तिकार श्री नंदिषेणमुनि कहते हैं :
(कहे कलापूर्णसूरि - ४0000000000000000000 २३१)