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________________ वि.सं. २०५२, कोइम्बत्तूर १-११-२०००, बुधवार कार्तिक शुक्ला - ५ (२२) धम्मनायगाणं । * कठिन परिश्रम उठाकर आगमों को जीवनमें आत्मसात् बनाकर अनुभव रसका आस्वाद पाकर हम तक आगम पहुंचाये, उनका हम पर असीम उपकार हैं । __ स्वरूप और उपकार - दोनों संपदाओं का वर्णन नमुत्थुणंमें गणधरों के द्वारा हुआ हैं, उसे पू. हरिभद्रसूरिजीने बराबर खोला हैं। निगोद से बाहर निकालकर मोक्ष तक पहुंचानेवाले भगवान हैं । भगवान मोक्ष के पुष्ट निमित्त हैं । छ: कारक भी उसमें उपकारी हैं । छ: कारक कार्य-कारण स्वरूप हैं । इन छ: कारकों के बिना दुन्यवी या आध्यात्मिक कोई कार्य हो नहीं सकता ।। मिट्टी, पिंड, स्थासक इत्यादि आकारों को धारण कर घड़ा बनता हैं उसके पहले अग्निमें तपता हैं। निगोद से निर्वाण तक की हमारी यात्रामें हमें भी अनेक अवस्थाओंमें से गुजरना पड़ता हैं । घड़े की यात्रा : मिट्टी से कुंभ तक की । हमारी यात्रा : निगोद से निर्वाण तक की । [२२४ 0000000000000000000 कहे कलापूर्णसूरि - ४]
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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