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________________ कुम्हार के बिना घड़ा नहीं बनता । भगवान के बिना मोक्ष नहीं मिलता । * कल हमने भगवान धर्मनायक हैं, उसके चार मूल हेतु देखे । उसके अवांतर ४-४ हेतु भी देखे । (कुल १६ हेतु हुए ।) धर्म का वशीकरण, उत्तम धर्म की प्राप्ति, धर्म का फल, धर्म के घात का अभाव - ये चार मूल हेतु हैं । * धर्म का वशीकरण भगवानने कैसे किया ? विधिपूर्वक निरतिचार धर्म का पालन करने से । यथोचित दान देने से और दानमें किसी भी तरह की अपेक्षा (इच्छा) नहीं रखने के कारण धर्म भगवान का सेवक हो गया । 'मैं तुझे ज्ञान देता हूं। तू मेरी सेवा कर ।' यह धर्म नहीं, सौदा हैं । भगवानने संपूर्ण निरपेक्ष बनक धर्म की साधना की थी। * भगवानने उत्तम धर्म की प्राप्ति की हैं । उसके चार कारण : (१) क्षायिक धर्म की प्राप्ति (२) परार्थ संपादन, (३) हीन व्यक्ति को भी समझाने का प्रयत्न करना, (४) भगवान का विशिष्ट प्रकार का तथाभव्यत्व । दूसरों से तीर्थंकर का क्षायिकभाव उत्कृष्ट प्रकार का होता हैं । अरे... दूसरों के क्षायिक सम्यग्दर्शन से भी भगवान का क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन बढकर होता हैं। इसलिए ही वह 'वरबोधि' कहा जाता हैं। भगवान का परोपकार स्वभाव निगोद से ही बीजरूप पड़ा होता हैं । वही आगे बढ़ते-बढते विकास प्राप्त करता हैं । परार्थ की इतनी भावना न हो तो चंडकौशिक जैसे के लिए १५-१५ दिन तक भगवान खड़े रह सकते ? कमठ को तारने के लिए इतना प्रयत्न करते ? __ भगवान परार्थव्यसनी हैं। परंतु हम स्वार्थ-व्यसनी हैं। भगवान से बराबर सामने की सीमा पर हम हैं । हीन व्यक्ति पर भी भगवान की परोपकार की प्रवृत्ति चालु होती हैं । घोड़े जैसे को प्रतिबोध देने के लिए भगवान पैठण से भरुच एक रातमें ६० योजन का विहार करके गये थे । परार्थ की सहज भावना के बिना ऐसा शक्य नहीं बनता । (कहे कलापूर्णसूरि - ४Moonwwwwwwwwwwwwwws २२५)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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