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________________ TOTRAININDIANORATINABAR NON A RRIOUS पू. भद्रंकरसूरिजी एवं पू. जंबूविजयजी के साथ पूज्यश्री, वि.सं. २०४७,शंखेश्वर २८-१०-२०००, शनिवार कार्तिक शुक्ला - १, वि.सं. २०५७ नूतन वर्ष प्रारंभ... आज से नये वर्ष का प्रारंभ हो रहा हैं । चतुर्विध संघ की आराधना निर्विघ्न हो इसलिए हमारे यहाँ नवस्मरण सुनाने की परंपरा हैं । पवित्र गिरिराज की छायामें नूतन वर्ष का मांगलिक सुनना परम सौभाग्य मानें । ध्यान से सुनें । इन शब्दोंमें ऐसी ताकत हैं, जो जीवन को मंगलमय बनाती (नव स्मरण के बाद) पूज्य आचार्यदेव श्री विजयकलाप्रभसूरिजी : __ भगवान के प्रति भक्ति भाव से श्री गौतमस्वामी अनंत लब्धिधर बने थे। श्री गौतमस्वामी सबके हृदयमें बसे हुए हैं। उनका नाम मंगलरूप गिना जाता हैं । उनका नाम लेने मात्र से विघ्न दूर होते हैं, कार्य सफल होते हैं । गौतमस्वामी के पास सब से बड़ी लब्धि समर्पण की थी। अनंत लब्धि का मूल भगवान के प्रति समर्पणभाव था । (कहे कलापूर्णसूरि - ४00000000000000000000 २०३)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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