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________________ * भगवान देशना द्वारा धर्म (श्रावक-साधु को चारित्र धर्म) देते हैं । श्रावक धर्म और साधु धर्म किसे कहते हैं ? हरिभद्रसूरिजी कहते हैं : (श्रावक धर्मः) अणुव्रताद्युपासकप्रतिमागतक्रियासाध्यः साधुधर्माभिलाषातिशयरूपः आत्मपरिणामः, साधुधर्मः पुनः सामायिकादिगतविशुद्धक्रियाभिव्यङ्ग्यः सकलसत्त्वहिताशयामृतलक्षणः स्वपरिणाम एव । बारह अणुव्रत, ग्यारह प्रतिमा आदि क्रियाओं से साध्य, साधु धर्म की अभिलाषारूप आत्मपरिणाम वह श्रावक धर्म । सामायिकादिगत शुद्ध क्रिया से अभिव्यक्त होता सकल जीवों का हित हो वैसे विचारों से भरा हुआ आत्मपरिणाम वह साधुधर्म हैं। ___ 'कहे कलापूर्णसूरि' पुस्तक का पठन शुरु किया हैं । बहुत ही आनंद आता हैं । पठन आगे बढता हैं त्यों त्यों प्रसन्नतामें वृद्धि होती हैं । ऐसी अच्छी-उत्तम पुस्तक भेजने के लिए आपके पास मेरा नम्र कृतज्ञताभाव व्यक्त करता हूं। परमात्मा को अक्षर-देह देकर, इन अक्षरों को मोक्ष की पंक्तिमें बिठा दिये हैं । - ललितभाई राजकोट (२०२ 600a0ooooooooooooooo कहे कलापूर्णसूरि - ४)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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