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________________ मनफरा, वि.सं. २०५६ २५-१०-२०००, बुधवार कार्तिक कृष्णा - १३ * हरिभद्रसूरिजी का प्रयत्न भगवान के प्रति बहुमान पैदा करने के लिए हैं । भगवान के प्रति बहुमान भाव जागृत हुआ तो आगे की भूमिकाएं स्वयं सुलभ बन जायेंगी । सैनिक, सेनापति और राजा के बल से निर्भय होकर लड़ते हैं । भक्त गुरु और भगवान के बल से निर्भय बनकर लड़ता हैं । भक्त को भय कैसा ? भगवान का सहारा लेकर लड़नेवाला आज तक कभी हारा नहीं हैं । * कोई भी दुर्विचार आये उसकी गुरु को जान करें, भगवान को बतायें । गुरु के पास से उपाय मिलते ही भय भाग जायेगा। * अभी भले द्रव्य से दीक्षा मिल गई हो, पर वास्तविक पात्रता तो अभय, चक्षु आदि के क्रम से ही मिलेगी । ___अभय, चक्षु आदिमें क्रमशः क्षयोपशम-भाव की वृद्धि होती रहती हैं । क्षयोपशम-भावमें न समझो तो मैं कहूंगा : आत्मा की शुद्धि बढती रहती हैं । क्षयोपशम की वृद्धि निरंतर होनी चाहिए। बीचमें अटक जाओ तो नहीं चलेगा । सीढियोंमें रुकते-रुकते चलो तो ऊपर कब पहुंचोगे ? (कहे कलापूर्णसूरि - ४ aasaoo oooooooooom १९७)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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