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शरणागति के बिना मोह का साम्राज्य कभी नष्ट नहीं होता। मोहमें भी मिथ्यात्व मोहनीय भयंकर हैं। मिथ्यात्व मोहनीय से जीव
आंख होते हुए भी अंधा बनता हैं । सभी वासनाओं का मूल कारण मिथ्यात्व की अंधता हैं । इस अंधता को मिटानेवाले सद्गुरु हैं, भगवान हैं । "प्रवचन अंजन जो सद्गुरु करे, देखे परम निधान'
- पू. आनंदघनजी यह सब बनता हैं उसके बाद ही बोधि मिलता हैं । शरणागति के बिना कभी बोधि (सम्यग्दर्शन) मिलता नहीं हैं । इसलिए ही 'सरणदयाणं' के बाद 'बोहिदयाणं' लिखा हैं ।
भगवान का निर्वाण कल्याणक (दीवाली) और नया साल नजदीक आ रहे हैं । दीवाली और नये साल का उपहार - प्रभु की तरफ से मिला हैं, ऐसा माने ।
(१९) बोहिदयाणं । . बोधि याने जिनधर्म की प्राप्ति । तीन करण प्राप्त करके रागद्वेष की तीव्र गांठ का भेद करके मिलता सम्यग्दर्शन वह बोधि हैं । जो शम-संवेगादि लक्षणों से जाना जाता हैं । अन्य दर्शनी इसे (सम्यग्दर्शन को) 'विज्ञप्ति' कहते हैं ।
सम्यग्दर्शन के पहले होते तीनों करण समाधि के सूचक हैं।
समाधिमें मन की (विचारों की) मृत्यु हो जाती हैं, किंतु उपयोग कायम रहता हैं ।
* शरीर से खुराक का पता चल जाता हैं । 'पीनो देवदत्तः दिवा न भुङ्क्ते' 'पुष्ट देवदत्त दिन को नहीं खाता ।' वह भले दिनमें नहीं खाता हो, पर रात को तो खाता ही होगा । नहीं तो इतनी हृष्ट-पुष्टता कहा से ? हृष्ट-पुष्ट आदमी यदि एसा कहता हो कि मैंने २०० उपवास किये हैं तो नक्की कुछ ऐसा समझें । नहीं तो उपवास का असर शरीर पर क्यों न हो ?
* शम-संवेग यह मुख्यता की दृष्टि से क्रम हैं । उत्पत्ति की दृष्टि से यह उत्क्रम समझें । इसलिए ही पहले आस्तिकता प्रकट होती हैं । फिर अनुकंपादि प्रकट होकर अंतमें शम प्रकट होता हैं । (कहे कलापूर्णसूरि - ४00000000000000000000 १९५)