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________________ वि.सं. २०४३, अंजार - कच्छ २४-१०-२०००, मंगलवार कार्तिक कृष्णा १२ * भगवान की अनन्य शरण लेकर साधना करें तो मोक्ष सिद्ध कर देनेवाली ताकत यहीं से ही मिलती हैं I मलिनता के कारण चित्त चंचल रहता हैं । मलिनता मोह के कारण आती हैं । मलिन चित्त भगवान की शरण से ही निर्मल बनता हैं । निर्मलता आते ही चित्त स्थिर बनने लगता हैं । स्थिरता का संबंध निर्मलता के साथ हैं । चंचलता का संबंध मलिनता के साथ हैं । चंचलता पर घरमें ले जाती हैं । निर्मलता स्व-घरमें ले जाती हैं । आश्चर्य हैं । हम स्व-घरमें ही जाना नहीं चाहते हैं, पर घर को ही स्व-घर मान लिया हैं । 'पिया ! पर घर मत जाओ ।' इस प्रकार चेतन को सामने रखकर कहा गया हैं । चेतन अभी पुद्गल के घरमें भटकता हैं । भगवान की शरण ही पर-घर से बचाकर स्व-- घरमें स्थिर बनाती हैं । विनय को समझने के लिये जिस तरह चंदाविज्झय हैं । उसी तरह शरणागति पदार्थ को समझने के लिये चउसरण पयन्ना हैं कहे कलापूर्णसूरि ४८८८८८० १९३ - 1
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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