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________________ घाती कर्मों के विगम के बिना भी बुद्धि के आठ गुण हैं, ऐसा लगता हैं, किंतु वह आभास समझें । बाहर से समान दिखता हैं, लेकिन फलमें बहुत अंतर हैं । यहाँ निर्मल बुद्धि की बात हैं । घाती कर्मों की मंदता के बिना बुद्धिमें निर्मलता प्रकट नहीं होती । मोहयुक्त बुद्धि महत्त्वाकांक्षा से भरी होगी : मैं बराबर पढूंगा तो लोग मेरी पूछताछ करेंगे, पूजा करेंगे, नहीं पढूंगा तो कौन पूछेगा ? कर्म- क्षय या आत्म- -शुद्धि का कोई आशय वहाँ देखने नहीं मिलेगा । इस बात को पू. हरिभद्रसूरिजी कहते हैं कि अन्य अध्यात्मिक आचार्योंने (योगिमार्ग प्रणेता अवधूत आचार्य) स्वीकारी हैं । बीलीमोरावाले जीतुभाई श्रोफ के द्वारा 'उपदेशधारा'' पुस्तक मिली हैं । शैली रोचक असरकारक हैं । कथावार्तालाप, सूत्रात्मक निरूपण, प्रकरण के अंतमें विशेष प्रेरक परिच्छेद इत्यादि अत्यंत उपयोगी हैं । 1 पसंदगी के विषय... मानव जीवनमें उदात्त भावना और गुणों के विकासमें पूरक बन सकते हैं । आपके साहित्य-संपादन के बारेमें जाना हैं । जैन गीता काव्यों का संशोधन चल रहा हैं । उसमें ज्ञानसार गीताका आपश्रीने पद्यानुवाद किया हैं उसकी नोट की हैं । डोकटर कविन शाह बीलीमोरा १९२ कळ www कहे कलापूर्णसूरि- ४
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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