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________________ वि.सं. २०५०, मद्रास २३-१०-२०००, सोमवार कार्तिक कृष्णा - ११ ' (१८) सरणदयाणं । * भगवान अमुक को सूर्य की तरह प्रकाशित करते हैं, अमुक के लिये दीपक जैसा प्रकाश देते हैं। जैसी जिसकी योग्यता । वर्षा समान ही होती हैं । आप घड़े जितना ही पानी भर सकते हो । वर्षा समान ही होती हैं । आप खेतमें जो बोते हो उसे उगाता हैं : गेहूं हो या बाजरा ! बबूल हो या आम ! पानी को कोई पक्षपात नहीं हैं। भगवान की वाणी को भी कोई पक्षपात नहीं हैं । आपकी योग्यता के अनुसार वह परिणाम पाती हैं । __भगवान की वाणी से श्री संघमें शक्ति का संचार होता हैं। आज भी वह शक्ति काम कर रही हैं । भगवान भले मोक्षमें गये हो, शक्ति के रूपमें यहीं पर हैं । * भगवान ही अभय आदि देते हैं । यहाँ भगवान का स्वयं कर्तृत्व भले गौण हो, लेकिन भक्त के लिए भगवान का कर्तृत्व ही मुख्य हैं । भोजन की तरफ से स्वयं कर्तृत्व भले गौण हो । क्योंकि भोजन बनाने की, चबाने की, पचाने की सभी क्रियाएं हमने ही की हैं । भोजन स्वयं की तरफ (कहे कलापूर्णसूरि - ४000 0 १८९)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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